मँगनी (शादी के प्रस्ताव) के प्रारंभिक चरण के संबंध में सुन्नत क्या हैॽ यानी अगर कोई युवक शादी करना चाहता है, तो वह पत्नी के घरवालों के पास किसको भेजेगा ताकि वह उसके घरवालों से शादी में उसका हाथ मांगेॽ यदि महिला और उसके परिवार की सहमति से उसका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाता है, तो मँगनी से पहले अगला क़दम क्या हैॽ जैसे महर और अन्य चीजें जो पति के लिए आवश्यक हैं… क्या महर का निर्धारण करते समय फातिहा पढ़ना सुन्नत हैॽ क्या मँगनी के दिन और शादी के दिन औरत को शादी का जोड़ा देना सुन्नत है या कोई अन्य पोशाक हैॽ
शरीयत के अनुसार मँगनी की प्रक्रिया
प्रश्न: 88130
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
सर्व प्रथम :
यदि कोई व्यक्ति शादी करना चाहता है, और उसने किसी विशिष्ट महिला को शादी का प्रस्ताव देने का फैसला किया है, तो वह उसके अभिभावक के पास स्वयं (अकेले) जा सकता है, या अपने किसी रिश्तेदार जैसे कि अपने पिता या भाई के साथ जा सकता है, या वह (अपनी ओर से) शादी का प्रस्ताव देने के लिए किसी और को प्रतिनिधि बना सकता है। इस मामले में विस्तार है। तथा प्रचलित रीति-रिवाजों का पालन किया जाना चाहिए। क्योंकि कुछ देशों में पुरुष मँगेतर का अकेले जाना शर्म की बात है, इसलिए इसे ध्यान में रखा जाना चाहिए।
शादी का प्रस्ताव देने वाले पुरुष (वर) के लिए अपनी मंगेतर (महिला) को देखना धर्मसंगत है। क्योंकि तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 1087), नसाई (हदीस संख्या : 3235) और इब्ने माजह (हदीस संख्या : 1865) ने मुगीरह बिन शो'बह रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्होंने एक महिला को शादी का प्रस्ताव दिया, तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा : “उसे देख लो, क्योंकि यह अधिक संभावित है कि तुम दोनों के बीच प्यार पैदा हो जाए।” यानी तुम दोनों के बीच स्थायी प्यार स्थापित होने की अधिक संभावना है। इस हदीस को अलबानी ने सहीह तिर्मिज़ी में सहीह कहा है।
दूसरा :
जब लड़की और उसके घरवाले सहमत हो जाएँ, तो उस समय महर, शादी के खर्च और उसकी तारीख वगैरह को लेकर समझौता करना चाहिए। यह भी रीति-रिवाजों की भिन्नता, तथा पति की क्षमता और शादी को पूरा करने के लिए उसकी तैयारी के अनुसार भिन्न होता है। कुछ लोग मँगनी और शादी के अनुबंध को एक ही बैठक में पूरा करते हैं, जबकि उनमें से कुछ मँगनी के बाद शादी के अनुबंध में देरी करते हैं, या शादी के अनुबंध के बाद प्रवेश करने में देरी करते हैं। और यह सब जायज़ है। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने आयशा रज़ियल्लाहु अन्हु से निकाह का अनुबंध तब किया जब वह छह साल की थीं, फिर जब वह नौ साल की हो गईँ तो आपने उनपर प्रवेश किया। इसे बुखारी (हदीस संख्या : 5158) ने रिवायत किया है।
तीसरा :
मँगनी के समय या निकाह के समय फातिहा पढ़ना सुन्नत नहीं है। बल्कि सुन्नत 'खुतबतुल-हाजा' पढ़ना है। अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंने कहा : “नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हमें शादी और अन्य चीजों में 'खुतबतुल-हाजा' (आवश्यकता का खुत्बा) सिखाया :
“इन्नल-हम्दा लिल्लाहि, नस्तईनुहु व नस्तग़फिरुहु, व नऊज़ो बिहि मिन शुरूरि अनफ़ुसिना। मन् यहदिहिल्लाहु फला मुज़िल्ला लहू, व मन् युज़लिल् फला हादिया लहू। व अश्हदो अन् ला इलाहा इल्लल्लाहु व अश्हदो अन्ना मुहम्मदन अब्दुहु व रसूलुहु” (हर प्रकार की प्रशंसा और स्तुति केवल अल्लाह के लिए योग्य है, हम उसी से मदद माँगते हैं और उसी से क्षमा याचना करते हैं, और हम अपने आपकी बुराइयों से उसकी शरण लेते हैं। अल्लाह जिसे हिदायत दे उसे कोई गुमराह करने वाला नहीं और जिसे अल्लाह गुमराह कर दे, उसे कोई हिदायत देने वाला नहीं। मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई सच्चा मा'बूद नहीं और मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) उसके बंदे और रसूल हैं)।
يَا أَيُّهَا النَّاسُ اتَّقُواْ رَبَّكُمُ الَّذِي خَلَقَكُم مِّن نَّفْسٍ وَاحِدَةٍ وَخَلَقَ مِنْهَا زَوْجَهَا وَبَثَّ مِنْهُمَا رِجَالاً كَثِيراً وَنِسَاء وَاتَّقُواْ اللّهَ الَّذِي تَسَاءلُونَ بِهِ وَالأَرْحَامَ إِنَّ اللّهَ كَانَ عَلَيْكُمْ رَقِيباً
“ऐ लोगो! अपने उस पालनहार से डरो, जिसने तुम्हें एक जीव (आदम) से पैदा किया तथा उसी से उसके जोड़े (हव्वा) को पैदा किया और उन दोनों से बहुत-से नर-नारी फैला दिए। उस अल्लाह से डरो, जिसके माध्यम से तुम एक-दूसरे से माँगते हो, तथा रिश्ते-नाते को तोड़ने से डरो। निःसंदेह अल्लाह तुम्हारा निरीक्षक है।” (सूरतुन-निसा : 1)
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ اتَّقُواْ اللّهَ حَقَّ تُقَاتِهِ وَلاَ تَمُوتُنَّ إِلاَّ وَأَنتُم مُّسْلِمُونَ
“ऐ ईमान वालो! अल्लाह से डरो, जैसा कि उससे डरना चाहिए तथा तुम्हारी मृत्यु न आए परंतु इस स्थिति में कि तुम मुसलमान हो।” (सूरत आल-इनरान : 102)
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا اللَّهَ وَقُولُوا قَوْلاً سَدِيداً يُصْلِحْ لَكُمْ أَعْمَالَكُمْ وَيَغْفِرْ لَكُمْ ذُنُوبَكُمْ وَمَن يُطِعْ اللَّهَ وَرَسُولَهُ فَقَدْ فَازَ فَوْزاً عَظِيماً
“ऐ ईमान वालो! अल्लाह से डरो तथा सही और सच्ची बात कहो। वह तुम्हारे लिए तुम्हारे कर्मों को सुधार देगा, तथा तुम्हारे पापों को क्षमा कर देगा और जो अल्लाह तथा उसके रसूल का आज्ञापालन करे, उसने बड़ी सफलता प्राप्त कर ली।” (सूरतुल अह़ज़ाब : 70-71)
इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 2118) ने रिवायत किया है और अलबानी ने सहीह अबी दाऊद में इसे सहीह कहा है।
'इफ़ता की स्थायी समिति' (19/146) से पूछा गया : क्या आदमी के महिला को शादी का प्रस्ताव देते समय फातिहा पढ़ना एक बिदअत हैॽ
उन्होंने जवाब दिया : “आदमी का किसी औरत से मँगनी करते, या उससे अपनी शादी का अनुबंध करते समय फातिहा पढ़ना एक बिद्अत है।” उद्धरण समाप्त हुआ।
चौथा :
मँगनी, या निकाह के अनुबंध, या प्रवेश (सुहागरात) के लिए मर्द या औरत के पहनने के लिए कोई विशेष कपड़े नहीं हैं। इस संबंध में उसका ध्यान रखना चाहिए जो लोगों में प्रचलित है, जब तक कि वह शरीअत के विरुद्ध न हो। इस आधार पर, एक आदमी के लिए सूट वग़ैरह पहनने में कोई हर्ज नहीं है।
परंतु अगर महिला ऐसे स्थान पर हो जहाँ पुरुष उसे देख सकते हैं, तो उसे अपने छिपानेवाले कपड़े पहनने चाहिए, जैसे कि शादी के पहिले और बाद में होने चाहिए। अगर वह महिलाओं के बीच में है, तो वह अपना श्रृंगार कर सकती है और जो चाहे वस्त्र धारण कर सकती है। लेकिन उसे अपव्यय, फिजूलखर्ची और ऐसी किसी भी चीज़ से दूर रहना चाहिए जो फ़ित्ने को आमंत्रित करती हो।
जहाँ तक अंगूठी पहनने की बात है, तो यह न पुरुष के लिए धर्मसंगत है और न महिला के लिए; क्योंकि इसमें काफिरों की नकल करना शामिल है।
अल्लाह हमें और आपको वह करने का सामर्थ्य प्रदान करे जिससे वह प्यार करता है और प्रसन्न होता है।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर