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वह अनियंत्रित जुनूनी विकार से ग्रस्त होने के कारण गाली बकता और शाप देता है।

प्रश्न: 90819

मैं जुनूनी बाध्यकारी विकार से पीड़ित हूँ, विशेष रूप से नमाज़ के दौरान और जब मैं अकेला होता हूँ। मुझमें जिस प्रकार का जुनूनी-बाध्यकारी विकार है वह कोसना और अपशब्द बोलना है, जो मैं अपनी इच्छा के विरुद्ध बोलता हूँ, जैसे कि खुद को, या अपने पिता या अपनी माँ को कोसना। 

कृपया मुझे उपचार की सही विधि बताएँ, और मेरे लिए दुआ करें। अल्लाह आपको अच्छा प्रतिफल दे।

उत्तर का पाठ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

जुनूनी-बाध्यकारी विकार (OCD) एक प्रकार की बीमारी है, जो व्यक्ति भी इससे पीड़ित है उसे निम्नलिखित तरीक़े से उपचार लेना चाहिए :

1- सर्वशक्तिमान अल्लाह का सहारा और उसकी शरण लेनी चाहिए। क्योंकि वह सर्वशक्तिमान संकटग्रस्त व्यक्ति को उत्तर देता है जब वह उसे पुकारता है और उसकी बुराई को दूर करता है, और उसे वैसे ही कहना चाहिए जैसे कि अय्यूब अलैहिस्सलाम ने कहा :

وَأَيُّوبَ إِذْ نَادَى رَبَّهُ أَنِّي مَسَّنِيَ الضُّرُّ وَأَنْتَ أَرْحَمُ الرَّاحِمِينَ

الأنبياء : 83

“तथा अय्यूब (की कहानी) को (याद करो), जब उन्होंने अपने पालनहार को पुकारा कि निःसंदेह मुझे कष्ट पहुँची है और तू दया करने वालों में सबसे अधिक दयावान् है।” (सूरतुल-अंबिया : 83)

तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "अल्लाह ने कोई बीमारी नहीं उतारी, परंतु उसने उसका इलाज भी उतारा है। जो लोग इसे जानते हैं, वे इसे जानते हैं, और जो नहीं जानते, वे इसे नहीं जानते।" इसे अहमद (हदीस संख्या : 3727) ने रिवायत किया है और अलबानी ने ग़ायतुल-मराम (292) में इसे सही कहा है।

अतः इलाज उसी सर्वशक्तिमान की ओर से है, और आरोग्य भी उसी के हाथ में है, इसलिए अल्लाह से खूब दुआ करो और भोर से पहले के समय का अधिकतम लाभ उठाओ; क्योंकि जब रात का आखिरी तीसरा हिस्सा बाकी होता है तो अल्लाह हर रात सबसे निचले आसमान पर उतरता है, और कहता है : “कौन है जो मुझे पुकारे, कि मैं उसे जवाब दूँ? कौन है जो मुझसे माँगे, कि मैं उसे प्रदान करूँॽ कौन है जो मुझसे माफ़ी माँगे, कि मैं उसे माफ़ कर दूँॽ” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 6321) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 758) ने रिवायत किया है।

2- वसवसे और उसके द्वारा प्रेरित किए जाने वाले कार्य से दूर रहना, और जितना संभव हो सके इबादत और आज्ञाकारिता के कामों में व्यस्त रहकर खुद को उससे परे रखना। इसीलिए नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने वस्वसे से प्रभावित व्यक्ति का मार्गदर्शन करते हुए फरमाया : “उसे अल्लाह की शरण लेनी चाहिए और (ऐसे विचार को) छोड़ देना चाहिए।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 3276) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 134) ने रिवायत किया है।

इसलिए जब आपके अंदर अपशब्द कहने या शाप देने की इच्छा पैदा हो, तो शापित शैतान से अल्लाह की पनाह माँगें, और खुद को अल्लाह की याद और उसकी पवित्रता बयान करने में व्यस्त रखें, या बुलंद आवाज़ से क़ुरआन की तिलावत करें, या अपने दोस्त से बात करें, इत्यादि।

3- अल्लाह तआला को अधिक से अधिक याद करें, विशेष रूप से इस्तिग़फ़ार (अल्लाह से क्षमा याचना करना), क्योंकि वसवसा शैतान की ओर से होता है, या उसमें उसके प्रवेश की जगह होती है, या उसमें उसका कोई हाथ होता है। और जब अल्लाह का ज़िक्र किया जाता है, तो शैतान पीठ फेरकर भाग जाता है। अल्लाह तआला ने फरमाया :

وَإِمَّا يَنْزَغَنَّكَ مِنَ الشَّيْطَانِ نَزْغٌ فَاسْتَعِذْ بِاللَّهِ إِنَّهُ هُوَ السَّمِيع الْعَلِيمُ

فصلت : 36

 “और यदि शैतान आपको उकसाए, तो अल्लाह से शरण माँगिए। निःसंदेह वह सब कुछ सुनने वाला, जानने वाला है।” (फ़ुस्सिलत 41 : 36)

इब्ने कसीर रहिमहुल्लाह ने अपनी तफ़सीर में फरमाया :

“जहाँ तक जिन्नों के शैतान का संबंध है, तो अगर वह वसवसा डाले तो उससे बचने का कोई उपाय नहीं है सिवाय इसके कि उसके रचयिता की शरण ली जाए जिसने उसे आप पर अधिकार दिया है। अगर आप अल्लाह की शरण लेंगे और उसके आश्रय में आ जाएँगे, तो वह उसे आपसे रोक देगा और उसकी चाल को नाकाम कर देगा। जब अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) नमाज़ के लिए खड़े होते थे, तो कहते थे : أعوذ بالله السميع العليم من الشيطان الرجيم من همزه ونفخه ونفثه अऊज़ो बिल्लाहिस-समीइल अलीम मिनश-शैतानिर्रजीम मिन हम्ज़िही व नफ़्ख़िही व नफ़्सिही (मैं अल्लाह की शरण में आता हूँ, जो सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ जानने वाला है, शापित शैतान से, उसके वसवसे, उसके अहंकार और उसकी शायरी से।” उद्धरण समाप्त हुआ।

मुस्लिम (हदीस संख्या : 2203) ने रिवायत किया कि उसमान बिन अबुल-आस रज़ियल्लाहु अन्हु नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आए और कहा : “ऐ अल्लाह के रसूल, शैतान मेरे और मेरी नमाज़ और मेरी क़िराअत में बाधक हो जाता है, और मेरी क़िराअत को उलझा देता है।” अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “वह शैतान है जिसका नाम खनज़ब है। अगर तुम उसका अनुभव करो तो उससे अल्लाह की शरण लो और अपने बाएँ तरफ तीन बार थूक दो (यानी थू-थू कर दो)।” वह कहते हैं : मैंने ऐसा ही किया, तो अल्लाह ने उसे मुझसे दूर कर दिया।”

तथा यहया अलैहिस्सलाम की अपने साथियों के लिए वसीयत (सलाह) में आया है : “मैं तुम्हें अल्लाह को याद करने का हुक्म देता हूँ, क्योंकि उसकी मिसाल उस आदमी की तरह है जिसका दुश्मन ने तेजी से पीछा किया, यहाँ तक कि वह एक मज़बूत क़िले में पहुँच गया जहाँ उसने अपने आपको उनसे सुरक्षित कर लिया। इसी तरह, बंदा अपने आपको अल्लाह को याद करके ही शैतान से बचा सकता है।” इसे तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 2863) ने रिवायत किया है और अलबानी ने सहीह अत-तिर्मिज़ी में सहीह कहा है।

4- किसी भरोसेमंद मुस्लिम डॉक्टर के पास जाना, क्योंकि यह वसवसा (विकार) एक प्रकार की बीमारी है, जैसा कि ऊपर बताया गया है, और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया है : “चिकित्सा-उपचार करो, क्योंकि अल्लाह ने कोई बीमारी नहीं बनाई, परंतु उसने उसके लिए एक दवा भी बनाई है, सिवाय एक बीमारी : बुढ़ापा के।" इसे अहमद (हदीस संख्या : 17726), अबू दाऊद (हदीस संख्या : 3855), तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 2038), इब्ने माजा (हदीस संख्या : 3436) ने रिवायत किया है और अलबानी ने सहीह अबू दाऊद में इसे सहीह कहा है।

5- आपको यह जात होना चाहिए कि जो कोई भी इस रोग से पीड़ित है, वह जो कुछ भी कहता है, उसके बारे में वह क्षम्य है, क्योंकि वह इसे स्वेच्छा से नहीं कहता है, तथा वह इसे नापसंद करता है। बल्कि, उसे इन शा अल्लाह सवाब मिलेगा, यदि वह धैर्य रखता है और अज्र व सवाब की आशा रखना है। तथा उसे वसवसा को नापसंद करने और उससे भागने पर पुण्य मिलेगा। यही कारण है कि जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कुछ साथी आए और उन्होंने आपसे पूछा : "हम अपने दिलों में कुछ ऐसा पाते हैं कि हममें से कोई भी उसे बोलना बहुत गंभीर समझता है। आपने फरमाया : “क्या तुम वास्तव में ऐसा महसूस करते हो?" उन्होंने कहा : हाँ। आपने फरमाया : "यह स्पष्ट ईमान है।" इसे मुस्लिम (हदीस संख्या : 132) ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस से रिवायत किया है।

नववी रहिमहुल्लाह ने “शर्ह मुस्लिम” में कहा :

“इसका मतलब यह है कि : तुम्हारा उसे बोलने को बहुत गंभीर समझना ही स्पष्ट ईमान है। क्योंकि इसे बहुत भयानक समझना और उससे और उसे बोलने से बहुत डरना, उसपर विश्वास करना तो दूर की बात है, यह उस व्यक्ति के लिए संभव है जिसने ईमान को निश्चित और पूर्ण रूप से प्राप्त कर लिया है, तथा वह संदेह और शंका से मुक्त है।” उद्धरण समाप्त हुआ।

 हम अल्लाह से आपके आरोग्य और कल्याण के लि प्रार्थना करते हैं।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है। 

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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