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धर्मार्थ कोषों की धनराशि में ज़कात अनिवार्य नहीं है

السؤال: 94842

हम लोग, ज़रूरतमंदों की मदद के लिए और कर्ज़ के मोहताज को उधार देने के लिए एक धर्मार्थ फंड में धन जमा करते हैं, इस फंड में इस समय एक बड़ी राशि है, तो क्या इसमें ज़कात अनिवार्य है?

الجواب

الحمد لله والصلاة والسلام على رسول الله وآله وبعد.

ज़रूरतमंदों को ऋण देने, उनके साथ घटित होने वाली दुर्घटनाओं आदि में उनकी मदद करने के लिए जो पैसा (धन) किसी धर्मार्थ कोष में रखा गया है, उसमें ज़कात अनिवार्य नहीं है। क्योंकि वह एक ऐसा धन है जो किसी निश्चित व्यक्ति के स्वामित्व में नहीं है। अतः वह वक़्फ किए गए धन के समान है, जिसमें ज़कात अनिवार्य नहीं होती है।

इफ्ता की स्थायी समिति के विद्वानों से प्रश्न किया गया कि : एक गोत्र के लोगों ने एक धनराशि जमा की है और उस राशि को इस गोत्र पर जारी होने वाले रक्त के लिए विशिष्ट कर दिया है, और उसे व्यापार में लगा दिया है, उससे प्राप्त होने वाला लाभ भी रक्त ही के लिए है। तो क्या इस राशि में ज़कात अनिवार्य है या नहीं? और अगर उसे व्यापार में नहीं लगाया जाता है तो क्या उस पर ज़कात है या नहीं? तथा क्या उसी क़बीला वालों के लिए अपने सोने-चांदी के धनों की ज़कात को उस कोष में देना जायज़ है?

तो उन्हों ने उत्तर दिया :

‘‘यदि मामला (वस्तुस्थिति) ऐसे ही है जैसा कि उल्लेख किया गया है, तो उपर्युक्त धन में ज़कात अनिवार्य नहीं है ; क्योंकि वह वक़्फ के हुक्म में है, चाहे वह धन जमा हुआ हो, या किसी व्यापार में लगा हुआ हो, तथा उसमें ज़कात देना भी जायज़ नहीं है, क्योंकि वह गरीबों के लिए विशिष्ट नहीं है, और न तो उनके अलावा अन्य ज़कात के हक़दार लोगों के लिए है।'' समाप्त हुआ । ‘‘फतावा स्थायी समिति’’ (8/291).

तथा उनसे यह भी प्रश्न किया गया : गोत्र के लोगों के लिए एक धनराशि का कोष गठित किया गया है, और इसका उद्देश्य रक्त आदि जैसे कुछ मामलों में आवश्यकता की पूर्ति करना है, फिर इस राशि को इस्लामी मुज़ारबा (एक व्यापार जिसमें आदमी अपने धन को किसी दूसरे को व्यापार करने कि लिए देता है और लाभ में दोनों साझेदार होते हैं) में लगा दिया गया है, तो क्या उसमें ज़कात अनिवार्य है?’’ तो उन्हों ने उत्तर दिया : ‘‘यदि मामला (वस्तुस्थिति) ऐसे ही है जैसाकि उल्लेख किया गया है, और वह राशि जो अनुदान के रूप में प्राप्त हुई है, उन लोगों के पास लौटकर नहीं आती है जिनसे वह जमा की गई है, और यदि वह परियोजना विफल हो गया तो उसे नेकी के अन्य कामों में खर्च कर दिया जायेगा, तो ऐसी हालत में उसमें ज़कात अनिवार्य नहीं है। और अगर परियोजना के विफल होने की अवस्था में वह राशि उन लोगों की तरफ लौट आती है जिनसे वह जमा की गई है तो हर एक पर उसके उस हिस्से में ज़कात अनिवार्य है जो उससे लेकर जमा किया गया है जबकि उस पर एक साल की अवधि बीत जाए।’’ अंत हुआ। ‘‘फतावा स्थायी समिति’’ (8/296)

तथा शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने गांव की एक ऐसी संस्था के बारे में, जिसके प्रतिभागी मासिक अंशदान के साथ उसमें अनुदान देते हैं, और उसकी राशि को दुर्घटनाओं, दीयत (ब्लड मनी या खूनबहा) पर मदद करने और शादी करने के लिए ज़रूरतमंद को क़र्ज़ (उधार) देने के लिए रखा जाता है, फरमाया : ‘‘इस फंड (कोष) की राशि में ज़कात अनिवार्य नहीं है, क्योंकि वह प्रतिभागियों के स्वामित्व से बाहर है, उसका कोई निश्चित मालिक नहीं है, और उस राशि में ज़कात नहीं है जिसका कोई विशिष्ट मालिक न हो।’’

‘‘मजमूओ फतावा इब्न उसैमीन’’ (18/184) से समाप्त हुआ।

المصدر

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