मोज़ों पर मसह करने की शर्तें क्या हैं तथा उसके प्रमाण क्या हैं ?
मोज़ों पर मसह करने की शर्तें
प्रश्न: 9640
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
मोज़ों पर मसह करने की चार शर्तें हैं:
पहली शर्त : यह है कि आदमी ने उन्हें तहारत (वुज़ू) की हालत में पहना हो, इसका प्रमाण आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का मुग़ीरा बिन शो'बा से यह फरमाना है कि : "उन्हें रहने दो, क्योंकि मैं उन्हें तहारत की हालत में पहना है।"
दूसरी शर्त : मोज़े या जुर्राब पवित्र हों, यदि वह नापाक हैं तो उन पर मसह करना जाइज़ नहीं है, इसका प्रमाण यह कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक दिन अपने सहाबा को इस हालत में नमाज़ पढ़ाई कि आप जूते पहने हुये थे, फिर अचानक आप ने नमाज़ के दौरान उन्हें निकाल दिया और आप ने (बाद में लोगों को) बतलाया कि जिबरील ने आप को सूचना दी थी कि उन में गंदगी लगी हुई थी। इसे अहमद ने अपनी मुसनद में अबू सईद खुदरी रज़ियल्लल्लाहु अन्हु की हदीस से रिवायत किया है, यह हदीस इस बात का प्रमाण है कि जिस चीज़ में गंदगी लगी हुई हो उस में नमाज़ जाइज़ नहीं है, क्योंकि अगर गंदी चीज़ पर मसह किया जायेगा तो मसह करने वाला गंदगी से लिप्त हो जायेगा, इसलिए उसका पवित्र करने वाला होना उचित नहीं है।
तीसरी शर्त : मोज़ों पर मसह करना हदसे असग़र (छोटी नापाकी) में होना चाहिये, जनाबत मे या गुस्ल अनिवार्य कर देने वाली चीज़ों में न हो, इस का प्रमाण सफवान बिन अस्साल रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस है कि उन्हों ने कहा कि : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हमें हुक्म दिया कि जब हम सफर में हों तो तीन दिन और तीन रात तक अपने मोज़ों को न निकालें सिवाय जनाबत (संभोग या स्वपनदोष के कारण वीर्यपात होने) के कारण, किन्तु मल, मूत्र और सोने से (भी न निकालें)। इस हदीस को अहमद ने सफवान बिन अस्साल रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस से अपनी मुस्नद में रिवायत किया है, अत: इस बात की शर्त लगाई जायेगी कि मसह हदसे असगर (छोटी नापाकी) में हो, और हम ने जो यह हदीस उल्लेख की है उसके कारण हदसे अकबर (बड़ी नापाकी) में मसह करना जाइज़ नहीं है।
चौथी शर्त : यह है कि मसह शरीअत में निर्धारित समय के भीतर हो और वह मुक़ीम (गैर मुसाफिर) के लिए एक दिन एक रात (24घन्टा) और मुसाफिर के लिए तीन दिन और तीन रात (72 घन्टा) है, इस का प्रमाण अली बिन अबू तालिब रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस है कि उन्हों ने कहा कि : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुक़ीम (गैर मुसाफिर) के लिए एक दिन एक रात और मुसाफिर के लिए तीन दिन और तीन रात निर्धारित किया है, अर्थात् मोज़ों पर मसह करने का समय। इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।
यह अवधि नापाकी के बाद पहली बार मसह करने के समय से शुरू होती है और मुक़ीम के लिये 24घन्टे पर और मुसाफिर के लिए 72घ्न्टे पर समाप्त होती है। अगर हम मान लें कि एक आदमी ने मंगलवार के दिन फज्र की नमाज़ के लिए वुज़ू किया और अपनी तहारत पर बाक़ी रहा यहाँ तक कि बुधवार की रात को इशा की नमाज़ पढ़ी और सो गया, फिर बुधवार के दिन फज्र की नमाज़ के लिए उठा और सूर्य के ढलने पर आधारित समयसारणी के अनुसार पाँच बजे मसह किया, तो मसह की मुद्दत की शुरूआत बुधावार के दिन सुबह पाँच बजे से होगी और जुमेरात की सुबह पाँच बजे तक बाक़ी रहेगी, अगर मान लिया जाये कि उस ने जुमेरात के दिन पाँच बजे से पहले मसह कर लिया तो वह इस मसह से जुमेरात के दिन फज्र की नमाज़ पढ़ सकता है और इसी तरह जब तक उसकी तहारत बाक़ी है वह जितनी नमाज़ें चाहे पढ़ सकता है, क्योंकि विद्वानों के राजेह (उच्च) कथन के अनुसार मसह की मुद्दत पूरी हो जाने पर वुज़ू नहीं टूटता है, और इसलिए भी कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने तहारत की अवधि को नहीं निर्धारित किया है बल्कि केवल मसह की अवधि को निर्धारित किया है, अत: मसह की अवधि पूरी हो जाने के बाद मसह करना जाइज़ नहीं है, किन्तु अगर वह तहारत पर है तो उसकी तहारत बा़की है, क्योंकि यह तहारत एक शरई प्रमाण के आधार पर साबित हुई है और जो चीज़ शरई प्रमाण के द्वारा साबित हो वह किसी शरई प्रमाण के द्वारा ही समाप्त हो सकती है, और मसह की अवधि पूरी हो जाने पर वुज़ू के टूटने का कोई प्रमाण नहीं है, और इसलिए भी कि असल (आधार) किसी चीज़ का उसी तरह बरक़रार रहना है जिस तरह वह थी यहाँ तक कि उस का समाप्त होना स्पष्ट हो जाये।
यह वो शर्तें हैं जो मोज़ों पर मसह करने के लिए ज़रूरी हैं, तथा इनके अलावा कुछ अन्य शर्तें भी हैं जिन्हें कुछ विद्वानों ने उल्लेख किया है, और उन में से कुछ के बारे में मामला गौरतलब है।
एलामुल मुसाफिरीन बि-बाज़ि आदाबि व अह्कामिस्सफर वमा यखुस्सो अल-मल्लाहीन अल-जव्वीईन
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर