नमाज़ के सही होने की शर्तें क्या हैंॽ
नमाज़ के सही होने की शर्तें
प्रश्न: 107701
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
इस्लामी धर्मशास्त्र के सिद्धांतों की शब्दावली में "शर्त" का अर्थ है : जिसके न पाए जाने से उसका अनस्तित्व आवश्यक हो जाए, और उसके पाए जाने से उसका अस्तित्व आवश्यक न हो।
नमाज़ के सही होने की शर्तें : वे चीज़ें हैं जिनपर नमाज़ का सही होना निर्भर करता है, इस प्रकार कि यदि इन शर्तों में से कोई शर्त न पाई जाए तो नमाज़ सही (मान्य) नहीं होगी। और वे शर्तें निम्नलिखित हैं :
पहली शर्त : नमाज़ के समय की शुरुआत – और यह सबसे महत्वपूर्ण शर्त है – : विद्वानों की सर्वसहमति के अनुसार, समय शुरू होने से पहले नमाज़ पढ़ना सही (मान्य) नहीं है, क्योंकि अल्लाह का फरमान है :
إِنَّ الصَّلاةَ كَانَتْ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ كِتَاباً مَوْقُوتاً
النساء: 103
“निःसंदेह नमाज़ ईमान वालों पर निर्धारित समय पर फ़र्ज़ की गई है।” (सूरतुन-निसा : 103)।
अल्लाह तआला ने अपनी किताब में नमाज़ के समय का उल्लेख संक्षेप में किया है। अल्लाह तआला ने फरमाया :
أَقِمِ الصَّلاةَ لِدُلُوكِ الشَّمْسِ إِلَى غَسَقِ اللَّيْلِ وَقُرْآنَ الْفَجْرِ إِنَّ قُرْآنَ الْفَجْرِ كَانَ مَشْهُوداً
الإسراء: 78
“सूर्य के ढलने से रात के अँधेरे तक नमाज़ क़ायम करें, तथा फ़ज्र की नमाज़ भी (क़ायम करें)। निःसंदेह फ़ज्र की नमाज़ (फ़रिश्तों की) उपस्थिति का समय है।” (सूरतुल-इसरा : 78]
अल्लाह के फरमान : لِدُلُوكِ الشَّمْسِ से अभिप्राय : सूरज का ढलना है। और अल्लाह के फरमान : إِلَى غَسَقِ اللَّيْلِ का अर्थ : रात का मध्य है। आधे दिन (दोहपर) से आधी रात तक का यह समय चार नमाज़ों को शामिल है : ज़ुहर, अस्र, मग़रिब और इशा। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी सुन्नत में नमाज़ के समय का विस्तार से उल्लेख किया है। प्रश्न संख्या (9940 ) के उत्तर में इसका पहले उल्लेख किया जा चुका है।
दूसरी शर्त : गुप्तांगों को ढांकना। अतः यदि कोई व्यक्ति अपने गुप्तांगों को प्रकट करते हुए नमाज़ पढ़े, तो उसकी नमाज़ सही नहीं है; क्योंकि सर्वशक्तिमान अल्लाह का फरमान है :
يَا بَنِي آدَمَ خُذُواْ زِينَتَكُمْ عِندَ كُلِّ مَسْجِدٍ
الأعراف: 31
“ऐ आदम की संतान! प्रत्येक नमाज़ के समय अपनी शोभा धारण करो।” (सूरतुल-आराफ़ : 31)
इब्ने अब्दुल-बर्र रहिमहुल्लाह ने कहा :
“वे (विद्वान) इस बात पर एकमत हैं कि जिस व्यक्ति ने अपने कपड़े छोड़ दिए, जबकि वह खुद को उनके साथ ढाँपने में सक्षम है और व नग्न होकर नमाज़ पढ़े, तो उसकी नमाज़ बातिल है।” उद्धरण समाप्त हुआ।
नमाज़ियों के लिए गुप्तांगों के तीन प्रकार हैं :
1. न्यूनतम गुप्तांग : यह सात से दस साल की उम्र के पुरुष का गुप्तांग है। उसके गुप्तांग केवल उसके दो निजी अंग : अगली और पिछली शर्मगाह हैं।
2. मध्यम गुप्तांग : यह उस व्यक्ति का गुप्तांग है जिसकी उम्र दस वर्ष या उससे अधिक हो गई हो, यह नाभि और घुटने के बीच का भाग है।
3. अधिकतम गुप्तांग : यह एक वयस्क, आज़ाद महिला का गुप्तांग है। नमाज़ के दौरान, उसके हाथों और चेहरे को छोड़कर, उसका पूरा शरीर गुप्तांग है। पाँव के प्रकट होने के बारे में विद्वानों ने मतभेद किया है।
तीसरी और चौथी शर्त : तहारत (पवित्रता), जो दो प्रकार की होती है : हदस (नापाकी) से पवित्रता, तथा नजासत (गंदगी) से पवित्रता।
1. हदस-ए-अकबर और हदस-ए-असग़र (बड़ी और छोटी नापाकी) से पवित्रता। यदि कोई व्यक्ति हदस (नापाकी) की अवस्था में नमाज़ पढ़ता है, तो विद्वानों की सर्वसहमति के अनुसार उसकी नमाज़ अमान्य है, क्योंकि बुखारी (हदीस संख्या : 6954) ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “अल्लाह तुम में से किसी की नमाज़ को स्वीकार नहीं करता है यदि वह नापाक (बे-वुज़ू) हो जाए, जब तक कि वह वुज़ू न कर ले।”
2. नजासत (गंदगी) से पवित्रता। अतः जिस व्यक्ति ने जानते हुए और याद रखते हुए इस अवस्था में नमाज़ पढ़ी कि उसके ऊपर नजासत थी, तो उसकी नमाज़ सही (मान्य) नहीं है।
नमाज़ी को तीन जगहों पर नजासत (गंदगी) से बचना चाहिए :
पहली जगह : शरीर। उसके शरीर पर कोई नजासत (गंदगी) नहीं होनी चाहिए। इसका प्रमाण वह हदीस है जिसे मुस्लिम (हदीस संख्या : 292) ने इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : “अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम दो कब्रों से गुज़रे, तो आपने कहा : “उन्हें दंडित किया जा रहा है। और उन्हें किसी बड़ी चीज़ के लिए दंडित नहीं किया जा रहा है (जिससे बचना मुश्किल था)। उनमें से एक चुग़लखोरी करता-फिरता था, और दूसरा अपने पेशाब से खुद को नहीं बचाता था …”
दूसरी जगह : पोशाक।
इसका प्रमाण वह हदीस है जिसे बुखारी (हदीस संख्या : 227) ने अस्मा बिन्त अबी बक्र रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : “एक महिला नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आई और कहा : आप क्या फरमाते हैं, यदि हम में से किसी महिला को कपड़े में मासिक धर्म आ जाए तो वह क्या करेॽ नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : वह (पहले) उसे खुरच दे, फिर उसे पानी से मले और पानी से उसे धोए, और उसमें नमाज़ पढ़े।”
तीसरी जगह : वह स्थान जहाँ नमाज़ अदा की जाती है, और इसका प्रमाण वह हदीस है जिसे बुखारी ने अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : एक देहाती (बद्दू) आया और मस्जिद के कोने में पेशाब करने लगा, तो लोगों ने उसे डाँटा, लेकिन नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया। जब वह पेशाब कर चुका, तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक बाल्टी पानी लाने का आदेश दिया और उसे उस जगह पर डाल दिया गया।
पाँचवीं शर्त : क़िबला की ओर मुँह करना। अतः जिस व्यक्ति ने कोई फ़र्ज नमाज़ क़िबला के अलावा किसी अन्य दिशा की ओर मुँह करके पढ़ी, जबकि वह उसकी ओर मुँह करने में सक्षम है, तो विद्वानों की सर्वसहमति के अनुसार उसकी नमाज़ बातिल है। क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान है :
فَوَلِّ وَجْهَكَ شَطْرَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ وَحَيْثُ مَا كُنْتُمْ فَوَلُّوا وُجُوهَكُمْ شَطْرَهُ
البقرة:144
“तो (अब) अपना चेहरा मस्जिदे ह़राम की ओर फेर लें, तथा तुम जहाँ भी हो, तो अपने चेहरे उसी की ओर फेर लो।” (सूरतुल बक़रा : 144]
तथा क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने – जैसाकि सही तरीक़े से नमाज़ न पढ़ने वाले व्यक्ति की हदीस में है – फरमाया : “फिर तुम क़िब्ला की ओर मुँह करो और तकबीर कहो।" इसे बुखारी (हदीस संख्या : 6667) ने रिवायत किया है।
अधिक जानकारी के लिए प्रश्न संख्या : (65853 ) का उत्तर देखें।
छठी शर्त : नीयत। अतः जिस व्यक्ति ने बिना नीयत के नमाज़ पढ़ी, तो उसकी नमाज़ बातिल (अमान्य) है। क्योंकि बुखारी (हदीस संख्या : 1) ने उमर बिन ख़त्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को कहते हुए सुना : “कार्यों का आधार नीयतों (इरादों) पर है और प्रत्येक व्यक्ति को वही मिलेगा, जो उसने नीयत की है।” अतः अल्लाह तआला नीयत के बिना किसी भी काम को स्वीकार नहीं करता है।
पिछली छह शर्तें नमाज़ के लिए विशिष्ट हैं, और उनके साथ प्रत्येक इबादत के लिए सामान्य शर्तों को भी जोड़ा जाएगा, और वे हैं : इस्लाम, बुद्धि और विवेक।
इस आधार पर नमाज़ के सही होने की शर्तें इज्माली तौर पर नौ होती हैं :
इस्लाम, बुद्धि, विवेक, नापाकी (अपवित्रता की स्थिति) को दूर करना, नजासत (गंदगी) को हटाना, गुप्त अंगों को ढंकना, नमाज़ के समय का प्रवेश करना, क़िबला की ओर मुँह करना और नीयत (इरादा)।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर
संबंधित उत्तरों