कुछ लोग नमाज़ में अपने कपड़ों के साथ खेलते हैं, या अपने नाखूनों को साफ करते हैं, या अपनी घड़ी में देखते हैं, और इनके अलावा अन्य कार्य करते हैं, खासकर जब इमाम क़ुरआन का पाठ कर रहा होता है। यह अक्सर उनके बगल में खड़े नमाज़ियों में झुंझलाहट और बेचैनी की भावना स्थानांतरित करता हैॽ तो इसका क्या हुक्म है?
नमाज़ में हरकत
प्रश्न: 12683
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
आदरणीय शैख़ इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने उल्लेख किया है कि नमाज़ अदा करते समय हरकत करना मूल रूप से मक्रूह (अनेच्छिक व नापसंदीदा) है, सिवाय इसके कि कोई आवश्यकता पड़ जाए। लेकिन इसे पाँच भागों में विभाजित किया जा सकता है:
प्रथम भागः अनिवार्य (वाजिब) हरकत।
दूसरा भागः निषिद्ध (हराम) हरकत।
तीसरा भागः घृणित (मक्रूह) हरकत।
चौथा भागः ऐच्छिक (मुस्तहब) हरकत।
पाँचवाँ भागः अनुमेय (जायज़) हरकत।
जहाँ तक वाजिब (अनिवार्य) हरकत की बात हैः तो इससे अभिप्राय वह हरकत है जिसपर नमाज़ की शुद्धता निर्भर करती है। उदाहरण के तौर पर कोई व्यक्ति अपने गुतरह (रूमाल) में कोई अशुद्धता देखे, तो उसके लिए अनिवार्य है कि वह उसे हटाने के लिए हरकत करे और अपना गुतरह उतार दे। ऐसा इसलिए है क्योंकि जिबरील अलैहिस्सलाम पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आए जबकि आप लोगों को नमाज़ पढ़ा रहे थे और उन्होंने आपको बताया कि आपके जूते पर कुछ गंदगी लगी है। तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी नमाज़ ही की अवस्था में उसे उतार दिया और नमाज़ को जारी रखा। (इसे अबू दाऊद (650) ने रिवायत किया है और अलबानी ने अल-इरवा (284) में इसे सहीह कहा है।)
इसी तरह उदाहरण के तौर पर अगर कोई उसे बताता है कि वह क़िबला के अलावा की ओर मुँह किए हुए है, तो उसके लिए अनिवार्य है कि वह क़िबला की ओर मुड़ जाए।
रही बात हराम (निषिद्ध) हरकत कीः तो इससे अभिप्राय बिना किसी ज़रूरत के लगातार अधिक हरकत करना है; क्योंकि इस तरह की हरकत नमाज़ को अमान्य कर देती है, और जो चीज़ नमाज़ को अमान्य कर दे उसको करना जायज़ (अनुमेय) नहीं है; क्योंकि यह अल्लाह तआला की आयतों (निशानियों) को मज़ाक बनाने के अध्याय के अंतर्गत आता है।
जहाँ तक मुस्तहब हरकत की बात हैः तो इससे अभिप्राय नमाज़ में कोई मुस्तहब काम करने के लिए हरकत करना है, जैसे कि यदि कोई व्यक्ति पंक्ति (सफ़) को सीधी करने के लिए हरकत करे, या वह अगली पंक्ति में अपने सामने रिक्त स्थान देखे, तो वह नमाज़ ही की अवस्था में उसको भरने के लिए आगे बढ़ जाए, या उसकी पंक्ति सिकुड़ जाए तो वह अंतर (फासला) को पूरा करन के लिए हरकत करे, या ऐसे ही अन्य हरकतें जिनके द्वारा नमाज़ में किसी मुस्तहब काम को किया जाए। क्योंकि यह नमाज़ को परिपूर्ण करने के अध्याय से है। इसीलिए जब इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ नमाज़ पढ़ी और वह आपके बाईं ओर खड़े हो गए, तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने पीछे से उनके सिर को पकड़कर उन्हें अपने दाहिने तरफ खड़ा कर दिया।'' (मुत्तफ़क़ अलैहि)।
रही बात अनुमेय (जायज़) हरकत कीः तो इससे अभिप्राय किसी आवश्यकता के लिए मामूली हरकत, या ज़रूरत के लिए अधिक हरकत है। किसी आवश्यकता के लिए मामूली हरकत के लिए उदाहरण नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का वह कृत्य है जब आप उमामा बिन्त ज़ैनब को उठाए हुए नमाज़ पढ़ रहे थे, जिसके आप नाना थे। जब आप खड़े होते तो उन्हें उठा लेते और जब आप सज्दा करते तो उन्हें नीचे उतार देते थे।'' (अल-बुखारी, 5996 और मुस्लिम, ५४३)
रही बात ज़रूरत की खातिर अधिक हरकत कीः तो इसका उदाहरण लड़ाई की अवस्था में नमाज़ पढ़ना है। अल्लाह तआला ने फरमायाः
حَافِظُوا عَلَى الصَّلَوَاتِ وَالصَّلاةِ الْوُسْطَى وَقُومُوا لِلَّهِ قَانِتِينَ* فَإِنْ خِفْتُمْ فَرِجَالاً أَوْ رُكْبَاناً فَإِذَا أَمِنْتُمْ فَاذْكُرُوا اللَّهَ كَمَا عَلَّمَكُمْ مَا لَمْ تَكُونُوا تَعْلَمُونَ
البقرة: 239
"नमाज़ों की हिफाज़त करो विशेषकर बीच वाली नमाज़ की, और अल्लाह तआला के लिए विनम्रता के साथ (बा-अदब) खड़े रहा करो। और यदि तुम्हें (दुश्मन का) डर है, तो पैदल या सवारी करके नमाज़ पढ़ो। फिर जब तुम सुरक्षित हो जाओ, तो अल्लाह को याद करो जिस तरह कि उसने तुम्हें उस चीज़ की शिक्षा दी है, जिसे तुम नहीं जानते थे।”
[सूरतुल बक़रा : 238-239]
क्योंकि जो व्यक्ति चलते हुए नमाज़ पढ़ता है, तो निःसंदेह उसका काम अधिक है, लेकिन चूँकि वह एक ज़रूरत की खातिर था तो उसकी अनुमति दी गई है और वह नमाज़ को अमान्य नहीं करता है।
रही बात मक्रूह (अनेच्छिक) हरकत कीः तो इससे अभिप्राय ऊपर उल्लिखित के अलावा सभी हरकतें हैं। और नमाज़ पढ़ते समय हरकत से संबंधित यही मूल सिद्धांत है। इसके आधार पर, हम उन लोगों से कहते हैं, जो नमाज़ में हरकत करते हैं कि तुम्हारा कार्य मक्रूह (घृणित) है और तुम्हारी नमाज़ में कमी पैदा करने वाला है। यह ऐसा मामला है जो प्रत्येक व्यक्ति के साथ देखा जाता है। चुनाँचे आप किसी व्यक्ति को अपनी घड़ी या कलम या गुतरा या नाक या दाढ़ी इत्यादि के साथ खेलते हुए देख सकते हैं। यह सब मक्रूह हरकत के अंतर्गत आता है, सिवाय इसके कि वह अधिक व लगातार हो तो ऐसी स्थिति में वह हराम है और नमाज़ को अमान्य कर देने वाला है।
शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने यह भी उल्लेख किया है कि नमाज़ को अमान्य करने वाली हरकत की कोई विशिष्ट संख्या नहीं है, बल्कि यह हर वह हरकत है जो नमाज़ के विपरीत हो, इस प्रकार कि यदि उस व्यक्ति को ऐसा करते हुए देखा जाए तो ऐसा लगे कि गोया वह नमाज़ नहीं पढ़ रहा है। इस तरह की हरकत नमाज़ को अमान्य कर देती है। इसीलिए विद्वानों रहिमहुमुल्लाह ने इसे उर्फे-आम (परंपरा) के आधार पर परिभाषित किया है। उन्होंने कहा है : “यदि हरकतें अधिक और निरंतर व लगातार हो जाएँ, तो वे नमाज़ को अमान्य कर देती हैं।” उन्होंने किसी विशिष्ट संख्या का उल्लेख नहीं किया है। तथा कुछ विद्वानों ने उसे तीन हरकतों के साथ निर्धारित किया है, लेकिन इसके लिए प्रमाण की आवश्यकता है; क्योंकि जो कोई भी किसी चीज़ की कोई निश्चित संख्या या तरीक़ा निर्धारित करता है, तो उसे उसका प्रमाण प्रस्तुत करना चाहिए, अन्यथा वह अल्लाह की शरीयत में नियंत्रक हो जाएगा।” (मजमूओ फतावा अश-शैख, 13 / 309-311)
तथा आदरणीय शैख अब्दुल अज़ीज़ बिन बाज़ रहिमहुल्लाह से उस व्यक्ति के बारे में पूछा गया जो नमाज़ अदा करते समय बहुत हरकत करता है: क्या उसकी नमाज़ अमान्य हो जाएगीॽ और उससे छुटकारा पाने की क्या विधि हैॽ
तो शैख रहिमहुल्लाह ने जवाब दिया :
मोमिन के लिए सुन्नत यह है वह अपनी नमाज़ पर ध्यान केंद्रित करे तथा अपने हृदय और शरीर के साथ उसमें विनम्रता अपनाए, चाहे वह अनिवार्य नमाज़ हो या नफ्ल नमाज़, क्योंकि अल्लाह तआला का कथन है :
قَدْ أَفْلَحَ الْمُؤْمِنُونَ * الَّذِينَ هُمْ فِي صَلاتِهِمْ خَاشِعُون
المؤمنون: 1-2
“वास्तव में ईमानवाले सफल हो गए, जो अपनी नमाज़ों में विनम्रता अपनाते हैं।” (सूरतुल मूमिनीन : 1-2)
तथा उसे इतमिनान (स्थिरता) से काम लेना चाहिए। यह नमाज़ के सबसे महत्वपूर्ण स्तंभों और दायित्वों में से एक है। क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उस व्यक्ति से, जो गलत ढंग से नमाज़ पढ़ रहा था और उसमें इतमिनान से काम नहीं ले रहा था, फरमायाः "वापस जाओ और नमाज़ पढ़ो क्योंकि तुमने नमाज़ नहीं पढ़ी है।” और आपने ऐसा तीन बार किया। तब उस आदमी ने कहा : "ऐ अल्लाह के रसूल, उस अस्तित्व की क़सम! जिसने आपको सत्य के साथ भेजा है, मैं इससे बेहतर नमाज़ नहीं पढ़ सकता। अतः आप मुझे सिखा दें।" तो पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "जब तुम नमाज़ पढ़ने के लिए खड़े हो, तो पूर्ण रूप से वुज़ू करो, फिर क़िबला की ओर मुँह करो और तकबीर कहो, और जो कुछ भी तुम्हें कुरआन याद हो उसका पाठ करो। फिर रुकू करो यहाँ तक कि तुम्हें रुकू करते हुए पूरा इतमिनान हो जाए। फिर अपना सिर उठाओ यहाँ तक कि तुम सीधे खड़े हो जाओ। फिर सज्दा करो यहाँ तक कि सज्दा करते हुए तुम्हें इतमिनान प्राप्त हो जाए। फिर सज्दे से उठो यहाँ तक कि सीधे बैठ जाओ और बैठने में इतमिनान (स्थिरता) प्राप्त हो जाए। फिर सज्दा करो यहाँ तक कि सज्दे में इतमिनान हो जाए। फिर उठो यहाँ तक कि सीधे खड़े हो जाओ। फिर तुम इसी तरह अपनी पूरी नमाज़ के दौरान करो।” (मुत्तफक़ अलैह)।
और अबू दाऊद की एक रिवायत में है कि आप ने फरमाया: "फिर तुम उम्मुल-क़ुरआन (सूरतुल-फ़ातिहा) का और जो भी अल्लाह चाहे, उसका पाठ करो।"
यह सहीह हदीस बताती है कि इतमिनान (स्थिरता) नमाज़ का एक स्तंभ (आवश्यक हिस्सा) है, और उसमें एक महत्वपूर्ण दायित्व है, जिसके बिना नमाज़ शुद्ध नहीं होती है। अतः जो अपनी नमाज़ में ठोंगें मारता है (बहुत तेज़ी से नमाज़ पढ़ता है), उसकी कोई नमाज़ नहीं है। ख़ुशू (ध्यानमग्नता और विनम्रता) नमाज़ का सार और आत्मा है। अतः मोमिन के लिए धर्मसंगत है कि वह इस पर ध्यान दे और इसे प्राप्त करने का लालायित हो।
जहाँ तक इतमिनान (स्थिरता) और खुशू (विनम्रता) के विपरीत हरकतों को तीन हरकतों के साथ निर्धारित करने की बात है, तो यह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की कोई हदीस हीं है, बल्कि वह कुछ विद्वानों का कथन है, जिसका कोई विश्वसनीय प्रमाण नहीं है।
लेकिन नमाज़ के दौरान व्यर्थ कार्य करना, जैसे कि नाक या दाढ़ी या कपड़े को हिलाना और उसमें व्यस्त रहना मक्रूह (घृणित) है। यदि व्यर्थ कार्य अधिक हो जाए तो यह नमाज़ को अमान्य कर देता है। लेकिन अगर वह परंपरा के अनुसार थोड़ा है, या वह अधिक है, लेकिन निरंतर (लगातार) नहीं है, तो उससे नमाज़ अमान्य नहीं होती है। लेकिन मोमिन के लिए धर्मसंगत है कि वह खुशू (ध्यानमग्नता और विनम्रता) को बनाए रखे, तथा नमाज़ को परिपूर्ण बनाने हेतु हर तरह के थोड़े या अधिक व्यर्थ कार्य को छोड़ दे।
इस बात का प्रमाण कि नमाज़ के दौरान थोड़ा कार्य और थोड़ी हरकतें नमाज़ को अमान्य नहीं करती हैं, इसी तरह गैर लगातार छिटपुट हरकतों और कार्य के नमाज़ को अमान्य न करने का प्रमाण नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रमाणित वह हदीस है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक दिन नमाज़ पढ़ने की अवस्था में आयइशा रज़ियल्लाहु अन्हा के लिए दरवाजा खोला था। [अबू दाऊद (हदीस संख्या : 922), नसाई 3/11, तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 601), शैख अलबानी ने सहीह तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 601) में इसे हसन कहा है।].
तथा अबू क़तादा रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस में साबित है कि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक दिन लोगों को इस अवस्था में नमाज़ पढ़ाई कि आप अपनी बेटी ज़ैनब की बेटी उमामह को उठाए हुए थे। चुनाँचे जब आप सज्दा करते तो उसे नीचे उतार देते और जब खड़े होते तो उसे उठा लेते। [फतावा उलमाइल-बलदिल-हराम 162-164].
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर