उन दोनों ने अज्ञानता में उम्रा के लिए चौदह चक्कर सई की, तो क्या उनका उम्रा सही है ॽ
प्रश्न: 137928
मेरे माता पिता इस साल उम्रा के लिए गए जिसके लिए वे दोनों लगभग दस वर्ष या उससे अधिक से सपना देख रहे थे, और जब वे दोनों सफा और मर्वा के बीच सई के लिए पहुँचे तो उन दोनों ने सात चक्कर के बजाय चौदह चक्कर लगाए, यह गुमान करते हुए कि एक संपूर्ण सई सफा से मर्वा तक और फिर मर्वा से सफा तक चक्कर लगाने से होती है। तो क्या उन दोनों का इस तरीक़े पर उम्रा करना सही है, या उन दोनों के लिए उसे नये सिरे से करना अनिवार्य है ॽ
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
हर प्रकार की
प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
सर्व प्रथम :
हर मुसलमान पर
अनिवार्य है कि वह अपने धर्म की उन आवश्यक चीज़ों की शिक्षा प्राप्त करे जिनसे उसका
अक़ीदा और उसकी इबादत शुद्ध और सही होती है,
और इसी चीज़ की ओर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने उस
हज्ज में जो आप ने लोगों के साथ किया था अपने सहाबा का मार्गदर्शन किया था,
चुनाँचे आप
सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनसे फरमाया :
“तुम अपने हज्ज के
काम सीख लो, क्योंकि मुझे नहीं पता कि शायद मैं अपने इस हज्ज के बाद और हज्ज न कर
सकूँ।” इसे मुस्लिम (हदीस संख्या : 1297) ने जाबिर की हदीस से
रिवायत किया है।
नववी रहिमहुल्लाह
ने फरमाया :
“यह लाम (अर्थात
हदीस के शब्द
“लि-ताखुज़ू” में लाम) अम्र
(अर्थात आदेश देने) के लिए है,
और उसका अर्थ यह है कि : तुम अपने मनासिक (हज्ज के कार्य)
सीख लो,
और उसका अभिप्राय यह है कि : ये कथन,
कर्म और स्थिति जो
मैं ने अपने हज्ज में अपनाए हैं यह हज्ज की बातें और उसका तरीक़ा हैं और यही
तुम्हारे मनासिक हैं,
अतः तुम इन्हें ले लो,
इन्हें स्वीकार कर लो, इन्हें याद रखो,
और इन पर अमल करो
और इसे लोगों को सिखाओ।’’
इमाम अहमद से कहा
गया : क्या ज्ञान प्राप्त करना अनिवार्य है
ॽ
उन्हों ने उत्तर
दिया : जी हाँ,
अपने धर्म के मामले में से जिसकी आप को आवश्यकता है उसको
जानना उचित है।
तथा उन्हों ने यह
भी कहा : उसके लिए अनिवार्य है कि इतना ज्ञान प्राप्त करे जिससे उसका धर्म स्थापित
होता है,
और वह इसमें कोताही न करे।
कहा गया कि : पूरे
ज्ञान पर ही धर्म स्थापित होता है
ॽ
उन्हों ने कहा :
फ़र्ज़ चीज़ जो स्वयं उसके ऊपर अनिवार्य है,
उसका सीखना ज़रूरी है।
कहा गया : उदाहरण
के तौर पर कौन सी चीज़
ॽ
उन्हों ने कहा :
जिससे अनभिज्ञ रहने से उसका काम नहीं चलता : उसकी नमाज़, उसका रोज़ा और इसके समान
अन्य चीज़ें।
इब्ने मुफ्लेह की
किताब
“अल-आदाब अश-शरईया” (2/99-100).
दूसरा :
चूँकि आपके माता
पिता ने हुक्म न जानने के कारण सई के चक्करों की संख्या में वृद्धि की है,
इसलिए उन दोनों का
उम्रा सही है,
और उन दोनों की सई सात वांक्षित चक्करों के द्वारा पूरी हो
गई,
और जो उससे बढ़कर है वह व्यर्थ है, उसका कोई हुक्म नहीं है।
तथा शैख इब्ने बाज़
रहिमहुल्लाह से प्रश्न किया गया :
मैं ने सफा और
मर्वा के बीच सई की,
लेकिन मैं ने सफा से सफा तक के चक्कर को एक शुमार किया,
तो क्या इस विषय
में मेरे ऊपर कोई चीज़ अनिवार्य है
ॽ
तो शैख ने उत्तर
दिया :
“यह आप की ओर से
वृद्धि है, आप ने चौदह चक्कर सई की है जबकि अनिवार्य सात चक्कर है,
और अन्य सात चक्कर जायज़ नहीं है,
क्योंकि यह शरीअत के विरूद्ध है,
किंतु आप जानकारी
न होने की वजह से क्षम्य हैं,
और आपके ऊपर अनिवार्य है कि अल्लाह के समक्ष इससे तौबा करें,
और यदि आप हज्ज या
उम्रा करें तो दुबारा ऐसा न करें ; क्योंकि जिससे मक़सद हासिल हो जाता है वह सफा से
मर्वा तक और फिर मर्वा से सफा तक सात चक्कर है,
आप सफा से शुरू करेंगे और मर्वा पर सात चक्कर खत्म करेंगे।” अंत हुआ।
“मजमूओ फतावा इब्ने बाज़” (17/341-342).
तथा देखें : फतावा
शैख इब्ने उसैमीन (22/424).
तथा उम्रा के
तरीक़े के लिए प्रश्न संख्या : (31819) का उत्तर देखें।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर