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क्या उस आदमी का हज्ज सही है जिसने अपना क़र्ज़ भुगतान नहीं किया है?

प्रश्न: 204986

मैं वर्ष 1422 हिज्री में हज्ज करने के लिए गया। लेकिन मेरे पास कुछ लोगों के क़र्ज़ -ऋण- थे, जिसका कारण यह था कि मैंने कुछ लोगों को क़र्ज़ दिए थे तो उन्हों ने मुझे धोखा दिया और वह मुझे नहीं वापस किए और मैं ही इन पैसों को लौटाने का ज़िम्मेदार हूँ। मैंने एक विद्वान से हज्ज के जायज़ होने के बारे में प्रश्न किया जबकि अभी मैंने क़र्ज़ नहीं चुकाया है : तो उन्हों ने उत्तर दिया : हाँ, जायज़ है ; क्योंकि तुझे पता है कि तू इन शा अल्लाह उसे भुगतान कर देगा।

जब मैंने उसी विषय के बारे में आपका जवाब पढ़ा तो उसे उससे विभिन्न पाया जो मुझसे कहा गया था।

तो अब प्रश्न यह है कि क्या मेरा हज्ज मक़बूल है?

क्योंकि मैं हज्ज के लिए गया, जबकि मैंने अपने उपर अनिवार्य क़र्ज़ का भुगतान नहीं किया और न तो मैं ने क़र्ज़ देनेवालों से अनुमति ली।

यदि मेरेा हज्ज मक़बूल नहीं है तो मैं क्या करूं? यदि पहला हज्ज ही इस्लाम का हज्ज है और दूसरा सुन्नत समझा जाता है।

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

हर प्रकार
की प्रशंसा और
गुणगान केवल अल्लह
के लिए योग्य है।

किसी प्रश्न
करने वाले के लिए
इबादतों के क़बूल
होने के बारे में
प्रश्न करना और
जवाब देने वाले
के लिए उसके बारे
में जवाब देन उचित
नहीं है
;
क्योंकि उनके
क़बूल होने का मामला
अल्लाह की ओर है,

बल्कि प्रश्न
और उत्तर इबादतों
के सही होने,

उसकी शर्तो
और अर्कान के पूरा
होने के बारे में
किया जायेगा।

जिसने इस हाल
में हज्ज किया
कि उसके ऊपर दूसरों
के कर्ज़ का बक़ाया
है : तो उसका हज्ज
सही है यदि उसके
अर्कान और शर्तें
पूरी हैं,
और माल या
क़र्ज़ का हज्ज के
सही होने से कोई
संबंध नहीं है।

जबकि बेहतर
यह है कि जिसके
ऊपर क़र्ज़ अनिवार्य
है वह हज्ज न करे,

और उस धन को
जिसे वह हज्ज में
खर्च करना चाहता
है क़र्ज़ में लगा
दे,
और
शरीअत की दृष्टि
से वह सक्षम नहीं
है।

इस विषय में
आपके सामने स्थयी
समिति के विद्वानों
के फतावे प्रस्तुत
हैं
:

1- वे कहते
हैं – जबकि उनसे
हज्ज के लिए क़र्ज़
लेनेवाले के बारे
में प्रश्न किया
गया-
:

”इन शा अल्लाह
तआला हज्ज सही
है,
और
आपका धन राशि क़र्ज़
लेना हज्ज के सही
होने को प्रभावित
नहीं करेगा।”

शैख अब्दुल
अज़ीज़ बिन अब्दुल्लाह
बिन बाज़,
शैख अब्दुर्रज़्ज़ाक़
अफीफी,

शैख अब्दुल्लाह
बिन गुदैयान.

फतावा अल-लजनह
अद्दाईमा लिल-बुहूस
अल-इलमिय्यह वल-इफ्ता”
(11/42) से समाप्त
हुआ।

2- उन्हों ने
कहा
:

”हज्ज के अनिवार्य
होने की शर्तों
में से : सक्षमता
है,
और
सक्षमता में से:
आर्थिक सक्षमता
है,
और
जिसके ऊपर क़र्ज़
अनिवार्य है जिसका
उससे तक़ाज़ा किया
जा रहा है,
इस तौर पर
कि क़र्ज़ वाले उस
आदमी को हज्ज से
रोक रहे हैं सिवाय
इसके कि वह उनके
क़र्ज़ को चुका दे
: तो ऐसा आदमी हज्ज
नहीं करेगा
;

क्योंकि वह
सक्षम नहीं है।
और अगर वे उससे
क़र्ज़ का मुतालबा
नहीं कर रहे हैं
और वह उनके बारे
में जानता है कि
वे सहिष्णुता वाले
हैं तो उसके लिए
जायज़ है,
और हो सकता
है कि उसका हज्ज
उसके क़र्ज़ की अदायगी
के लिए अच्छा कारण
बन जाए।”

शैख अब्दुल
अज़ीज़ बिन अब्दुल्लाह
बिन बाज़,
शैख अब्दुर्रज़्ज़ाक़
अफीफी,

शैख अब्दुल्लाह
बिन गुदैयान

”फतावा अल-लजनह
अद्दाईमा लिल-बुहूस
अल-इलमिय्यह वल-इफ्ता”
(11/46) से समाप्त हुआ।

तथा प्रश्न
संख्या (41739) का उत्तर
देखें।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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