मैं वर्ष 1422 हिज्री में हज्ज करने के लिए गया। लेकिन मेरे पास कुछ लोगों के क़र्ज़ -ऋण- थे, जिसका कारण यह था कि मैंने कुछ लोगों को क़र्ज़ दिए थे तो उन्हों ने मुझे धोखा दिया और वह मुझे नहीं वापस किए और मैं ही इन पैसों को लौटाने का ज़िम्मेदार हूँ। मैंने एक विद्वान से हज्ज के जायज़ होने के बारे में प्रश्न किया जबकि अभी मैंने क़र्ज़ नहीं चुकाया है : तो उन्हों ने उत्तर दिया : हाँ, जायज़ है ; क्योंकि तुझे पता है कि तू इन शा अल्लाह उसे भुगतान कर देगा।
जब मैंने उसी विषय के बारे में आपका जवाब पढ़ा तो उसे उससे विभिन्न पाया जो मुझसे कहा गया था।
तो अब प्रश्न यह है कि क्या मेरा हज्ज मक़बूल है?
क्योंकि मैं हज्ज के लिए गया, जबकि मैंने अपने उपर अनिवार्य क़र्ज़ का भुगतान नहीं किया और न तो मैं ने क़र्ज़ देनेवालों से अनुमति ली।
यदि मेरेा हज्ज मक़बूल नहीं है तो मैं क्या करूं? यदि पहला हज्ज ही इस्लाम का हज्ज है और दूसरा सुन्नत समझा जाता है।
हर प्रकारकी प्रशंसा औरगुणगान केवल अल्लहके लिए योग्य है।
किसी प्रश्नकरने वाले के लिएइबादतों के क़बूलहोने के बारे मेंप्रश्न करना औरजवाब देने वालेके लिए उसके बारेमें जवाब देन उचितनहीं है ; क्योंकि उनकेक़बूल होने का मामलाअल्लाह की ओर है, बल्कि प्रश्नऔर उत्तर इबादतोंके सही होने, उसकी शर्तोऔर अर्कान के पूराहोने के बारे मेंकिया जायेगा।
जिसने इस हालमें हज्ज कियाकि उसके ऊपर दूसरोंके कर्ज़ का बक़ायाहै : तो उसका हज्जसही है यदि उसकेअर्कान और शर्तेंपूरी हैं, और माल याक़र्ज़ का हज्ज केसही होने से कोईसंबंध नहीं है।
जबकि बेहतरयह है कि जिसकेऊपर क़र्ज़ अनिवार्यहै वह हज्ज न करे, और उस धन कोजिसे वह हज्ज मेंखर्च करना चाहताहै क़र्ज़ में लगादे, औरशरीअत की दृष्टिसे वह सक्षम नहींहै।
इस विषय मेंआपके सामने स्थयीसमिति के विद्वानोंके फतावे प्रस्तुतहैं :
1- वे कहतेहैं – जबकि उनसेहज्ज के लिए क़र्ज़लेनेवाले के बारेमें प्रश्न कियागया- :
”इन शा अल्लाहतआला हज्ज सहीहै, औरआपका धन राशि क़र्ज़लेना हज्ज के सहीहोने को प्रभावितनहीं करेगा।”
शैख अब्दुलअज़ीज़ बिन अब्दुल्लाहबिन बाज़, शैख अब्दुर्रज़्ज़ाक़अफीफी, शैख अब्दुल्लाहबिन गुदैयान.
फतावा अल-लजनहअद्दाईमा लिल-बुहूसअल-इलमिय्यह वल-इफ्ता”(11/42) से समाप्तहुआ।
2- उन्हों नेकहा :
”हज्ज के अनिवार्यहोने की शर्तोंमें से : सक्षमताहै, औरसक्षमता में से:आर्थिक सक्षमताहै, औरजिसके ऊपर क़र्ज़अनिवार्य है जिसकाउससे तक़ाज़ा कियाजा रहा है, इस तौर परकि क़र्ज़ वाले उसआदमी को हज्ज सेरोक रहे हैं सिवायइसके कि वह उनकेक़र्ज़ को चुका दे: तो ऐसा आदमी हज्जनहीं करेगा ; क्योंकि वहसक्षम नहीं है।और अगर वे उससेक़र्ज़ का मुतालबानहीं कर रहे हैंऔर वह उनके बारेमें जानता है किवे सहिष्णुता वालेहैं तो उसके लिएजायज़ है, और हो सकताहै कि उसका हज्जउसके क़र्ज़ की अदायगीके लिए अच्छा कारणबन जाए।”
शैख अब्दुलअज़ीज़ बिन अब्दुल्लाहबिन बाज़, शैख अब्दुर्रज़्ज़ाक़अफीफी, शैख अब्दुल्लाहबिन गुदैयान
”फतावा अल-लजनहअद्दाईमा लिल-बुहूसअल-इलमिय्यह वल-इफ्ता”(11/46) से समाप्त हुआ।
तथा प्रश्नसंख्या (41739) का उत्तरदेखें।