मेरे ऊपर रमज़ान के रोज़े की क़ज़ा अनिवार्य है और मैं आशूरा (दसवें मुहर्रम) का रोज़ा रखना चाहता हूँ। क्या मेरे लिए क़ज़ा करने से पहले आशूरा का रोज़ा रखना जाइज़ है ? तथा क्या मेरे लिए रमज़ान के रोज़े की क़ज़ा की नीयत से आशूरा (यानी दसवें मुहर्रम) और ग्यारहवें मुहर्रम का रोज़ा रखना जाइज़ है ? और क्या मुझे आशूरा के रोज़े की फज़ीलत प्राप्त होगी ?
जिस व्यक्ति पर रमज़ान के रोज़े की क़ज़ा बाक़ी है उसके लिए आशूरा का रोज़ा रखना
प्रश्न: 21787
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
सर्व प्रथम:
वह नफ्ल (स्वैच्छिक) रोज़ा नहीं रखेगा जबकि उसके ऊपर रमज़ान के एक या कई दिनों के रोज़े अनिवार्य हैं,बल्कि वह अपने ऊपर रमज़ान के बाक़ी रह गए रोज़ों की क़ज़ा से शुरूआत करेगा, फिर नफ्ल (स्वैच्छिक) रोज़ा रखेगा।
द्वितीय:
यदि वह मुहर्रम के दसवें और ग्यारहवें दिन का रोज़ा अपने ऊपर अनिवार्य उन दिनों की क़ज़ा की नीयत से रखता है जिन दिनों का उसने रमज़ान के महीने में रोज़ा तोड़ दिया था,तो ऐसा करना जाइज़ है,और यह उसके ऊपर अनिवार्य दो दिनों की क़ज़ा होगी ;क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है: "कामों का आधार नीयतों पर है,और हर व्यक्ति के लिए वही चीज़ है जिसकी उसने नीयत की हैं।" स्थायी समिति के फत्वे 11/401.
"इस बात की आशा की जा सकती है कि आपको क़ज़ा करने का अज्र व सवाब और उस दिन का रोज़ा रखने का अज्र व सवाब मिले।" फतावा मनारूल इस्लाम लिश्शैख मुहम्मद बिन उसैमीन रहिमहुल्लाह 2/358
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर