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आत्म रक्षा के बारे में इस्लाम का प्रावधान क्या है ?

प्रश्न: 21932

आत्म रक्षा के बारे में इस्लाम का विचार क्या है ? क्या वह अधिकारों में से है ? और क्या इस अधिकार की कुछ शर्तें पाई जाती हैं ? क्या क़ुर्आन ने आत्म रक्षा के विषय को उठाया है ?

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

हर
प्रकार की प्रशंसा और स्तुति केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

जान,
सतीत्व (इज़्ज़त), बुद्धि, धन और धर्म की रक्षा शरीअत की सर्वज्ञात ज़रूरी तत्वों में
से है, और यही मुसलमानों के यहाँ ‘पाँच ज़रूरतों’ (यानी पाँच अनिवार्य व आवश्यक
चीज़ों) के नाम से परिचित हैं।
अतः इंसान
के लिए ज़रूरी है कि वह अपनी जान की रक्षा करे, और उसके लिए कोई ऐसी चीज़ सेवन करना जायज़
नहीं है जिससे उसे नुक़सान पहुँचे।
तथा उसके लिए यह भी जायज़ नहीं कि वह किसी दूसरे को उसे नुक़सान
पहुँचाने पर सक्षम करे। यदि उसके ऊपर कोई इंसान या दरिंदा या उनके अलावा कोई अन्य आक्रमण
करे, तो उसके ऊपर अपने आपकी या अपने परिवार की या अपने धन की रक्षा करना अनिवार्य है।
यदि वह क़त्ल कर दिया गया तो वह शहीद है और क़त्ल करने वाला नरक में होगा।

अगर
इस अत्याचार पर निष्कर्षित होने वाला नुक़सान साधारण है,
और उसने अल्लाह के लिए उसे छोड़ दिया,
तो इसमें कोई संदेह नहीं कि अल्लाह तआला उसे उसका बदला प्रदान
करेगा, जबतक कि वह उसके ऊपर या किसी अन्य पर इस अत्याचार में वृद्धि का कारण न हो।

स्रोत

शैख अब्दुल करीम अल-खुज़ैर

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