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फ़र्ज़ नमाज़ों के तुरंत बाद दुआ करना बिद्अत है

السؤال: 21976

कुछ नमाज़ी लोग फर्ज़ नमाज़ से सलाम फेरने के तुरंत पश्चात दुआ करते हैं, जबकि कुछ लोग कहते हैं कि केवल तस्बीह फातिमी की अनुमति है। तथा कुछ लोग सख्ती के साथ इस बात का समर्थन करते हैं कि नमाज़ के तुरंत बाद दुआ करना एक बिद्अत है। इस विषय ने हमारे समुदाय में एक तरह का तनाव पैदा कर दिया है, विशेषकर इमाम अबू हनीफा या शाफई के अनुयायियों में।
क्या हमारे लिए नमाज़ के बाद दुआ करना जायज़ है ?
और क्या हमारे लिए नमाज़ से फारिग होने के बाद इमाम के साथ-साथ दुआ करना जायज़ है ?

الجواب

الحمد لله والصلاة والسلام على رسول الله وآله وبعد.

स्थायी समिति के फतावा में आया है कि : ''फर्ज़ नमाजों के बाद दुआ करना सुन्नत नहीं है यदि वह हाथ उठाकर हो, चाहे वह केवल इमाम की तरफ से हो, या केवल मुक़्तदी की ओर से हो, या उन दोनों की तरफ से एक साथ हो, बल्कि यह बिदअत है; क्योंकि यह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से याआपके सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम से वर्णित नहीं है। जहाँ तक बिना हाथ उठाए दुआ करने की बात है तो इसमें कोई आपत्ति नहीं है, क्योंकि इस बारे में कुछ हदीसें वर्णित हैं।'' फतावा स्थायी समिति 7/103.

तथा समिति से : पाँच दैनिक नमाज़ों के बाद हाथ उठाकर दुआ करने के बारे में पूछा गया कि उसका उठाना नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रमाणित है या नहीं ? और यदि प्रमाणित नहीं है तो क्या दैनिक नमाज़ों के बाद हाथ उठाना जायज़ है ?

तो उसने उत्तर दिया कि: ''हमारे ज्ञान के अनुसार, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से फर्ज़ नमाज़ से सलाम फेरने के बाद अपने दोनों हाथों को दुआ के लिए उठाना साबित नहीं है, और फर्ज़ नमाज़ से सलाम फेरने के बाद उन्हें उठाना सुन्नत के विरूद्ध है।'' फतावा स्थायी समिति 7/104

तथा समिति ने उल्लेख किया कि : ''पाँच दैनिक नमाज़ों और मुअक्कदह सुन्नतों के बाद ऊँचे स्वर में दुआ करना या उसके बाद सामूहिक रूप से निरंतरता के साथ दुआ करना एक घृणित बिदअत (नवाचार) है। क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से इसके बारे में कोई चीज़ साबित नहीं है और न ही आपके सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम से कुछ प्रमाणित है, और जिसने फर्ज नमाज़ों के बाद या उसकी सुन्नतों के बाद सामूहिक रूप से दुआ किया तो वह इस बारे में अह्ले सुन्नत व जमाअत का विरोध करने वाला है, तथा जिस व्यक्ति ने उसका विरोध किया और उस तरह नहीं किया जिस तरह कि उसने किया है उस पर यह आरोप लगाना कि वह काफिर है या वह अह्ले सुन्नत व जमाअत में से नहीं है, उसकी अज्ञानता का प्रतीक, पथभ्रष्टता और तथ्यों का बदलना है।''

फतावा इस्लामिया 1/319

المصدر

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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