क्या कोई मुसलमान उन दिनों का फ़िद्या दे सकता है जिन दिनों का उसने रोज़ा नहीं रखा है, यहाँ तक कि अगर वह स्वस्थ था? क्योंकि वह मधुमेह और रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) की समस्याओं से ग्रस्त है। तथा क्या वह एक गरीब को एक बार खाना खिलाएगा या दो बार? वह विदेश में काम करता है और एक महीने की छुट्टी पर अपने देश में आया है।
मधुमेह और रक्तचाप से पीड़ित मरीज़ रमज़ान के रोजों में क्या करें?
प्रश्न: 222148
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
सर्व प्रथम :
मधुमेह (शुगर) और रक्तचाप के सभी रोगी एक ही स्तर के नहीं होते हैं, बल्कि डॉक्टर उन्हें कई प्रकार में विभाजित करते हैं, चुनाँचे उनमें से कुछ मरीज़ सुरक्षित रूप से रोज़ा रख सकते हैं, यदि वह चिकित्सा दिशा-निर्देशों का पालन करें। जबकि उनमें से कुछ लोग रोज़ा नहीं रख सकते हैं।
हालांकि, अगर मधुमेह और रक्तचाप दोनों एक साथ एकत्रित हो जाएं : तो ऐसी स्थिति में मरीज़ के लिए रोज़ा रखना अधिक कठिन होता है।
इस आधार पर, मरीज़ को चाहिए कि चिकित्सक से परामर्श करे और फिर चिकित्सक उसे रोज़ा रखने या छोड़ने की जो भी सलाह दे उसपर अमल करे। क्योंकि हर प्रकार की बीमारी रोज़ा तोड़ने को वैध नहीं ठहराती है, जैसा कि फत्वा संख्या : (1319) में बीत चुका है।
दूसरा :
चूँकि मधुमेह (शुगर) और रक्तचाप पुरानी बीमारियों (जीर्ण रोगों) में से हैं, इसलिए सबसे अधिक संभावना यही है कि मरीज़ ने उनकी वजह से जो रोज़े तोड़ दिए हैं वह उन्हें क़ज़ा करने में कभी संभव नहीं होगा। अतः उसके ऊपर अनिवार्य यह है कि वह हर उस दिन के बदले जिसका रोज़ा उसने तोड़ दिया है, एक गरीब व्यक्ति को खाना खिलाए, और उसके ऊपर क़ज़ा अनिवार्य नहीं है।
तथा ‘‘एक मिस्कीन (गरीब) व्यक्ति को खाना खिलाने’’ का अभिप्राय यह है कि उसे एक खूराक खाना खिलाना है, तथा बीमार व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह खाना बनाकर गरीब को उस पर आमंत्रित करे, या फिर उसे पकाया हुआ भोजन या कच्चे ही (खाद्यान्न) दे दे। अगर उसने इन तीनों में से कोई एक कार्य कर लिया तो उसने एक गरीब व्यक्ति को खाना खिलाने का कर्तव्य पूरा कर दिया, जैसा कि फत्वा संख्या (49944) और (101100) में इसका उल्लेख किया जा चुका है।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञाान रखता है।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर
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