अल्लाह की इच्छा से मैं ज़ुल-हिज्जा के सातवें दिन हज्ज तमत्तुअ करने के लिए जाना चाहता हूँ। हज्ज की इबादत में दाखिल होते समय मैं क्या कहूँ ? और उम्रा की सई करने के बाद सिर के बाल मुँडाना अफज़ल है या छोटे करवाना? और मैं हज्ज का एहराम कहाँ से बाँधूँ और यौमुन्नहर को जमरतुल अक़बा को कंकरी मारने के बाद क्या मेरे लिए सिर के बाल मुँडाना अनिवार्य है?
हज्ज तमत्तुअ करनेवाला कहाँ से एहराम बाँधेगा और क्या उसके लिए जमरात को कंकरी मारने के बाद सिर के बाल मुँडवाना अनिवार्य है
प्रश्न: 222836
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
सर्व प्रथम :
हज्ज तमत्तुअ : हज्ज के महीने – हज्ज के महीने शव्वाल, ज़ुल क़ादा औरज़ुल हिज्जा हैं – में अकेले उम्रा का एहराम बाँधना, चुनाँचे उसका एहराम बाँधते समय कहे: लब्बैका उम्रा।
शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने – तमत्तुअ के उम्रा का वर्णन करते हुए – फरमाया:
‘‘जब वह मीक़ात पहुँचे, तो गुस्ल करे जिस तरह जनाबत के लिए गुस्ल करता है, और अपने सिर और दाढ़ी पर अपने पास उपलब्ध सबसे अच्छी सुगंध लगाए, फिर एहराम के कपड़े तहबंद और चादर पहने, और बेहतर यह है कि वे दोनों सफेद और साफ सुथरे हों, फिर वह कहे : लब्बैका उमरह, लब्बैका, अल्लाहुम्मा लब्बैक, लब्बैका ला शरीका लका लब्बैक, इन्नल हम्दा वन्नेमता लका वल मुल्क, ला शरीका लक। (‘‘मैं उपस्थित हूँ, ऐ अल्लाह मैं उपस्थित हूँ, मैं उपस्थित हूँ, तेरा कोई साझी नहीं, मैं उपस्थित हूँ, हर प्रकार की स्तुति और सभी नेमतें तथा राज्य तेरा ही है, तेरा कोई साझी नहीं।’’) पुरूष इसे ज़ोर आवाज़ से कहेगा। और उसे मालूम होना चाहिए कि जो भी वृक्ष, या पत्थर उसे सुनेगा वह क़ियामत के दिन उसके लिए इस तल्बिया की गवाही देगा। तल्बिया का विषय : अल्लाह सर्वशक्तिमान को उत्तर देना है, क्योंकि लब्बैका का अर्थ है : मैं उपस्थित हूँ, और वह अपने तल्बिया को जारी रखे यहाँ तक कि वह उम्रा का तवाफ शुरू कर दे। जब वह मक्का पहुँच जाए तो उम्रा के लिए तवाफ और सई करे, और अपने सिर के बाल मुँडा दे या छोटे करवा ले, और अपने एहराम से हलाल हो जाए (एहराम खोल दे)। जब तर्विया का दिन अर्थात आठवीं ज़ुलहिज्जा का दिन आए : तो केवल हज्ज का एहराम बाँधे और उसके सभी कार्यों को अंजाम दे। हज्ज तमत्तुअ करनेवाला पूर्ण उम्रा और पूर्ण हज्ज करता है।
‘‘अल्लिक़ा अश्शह्री’’ (मासिक बैठक) से समाप्त हुआ।
हज्ज तमत्तुअ करनेवाला आठवीं ज़ुल हिज्जा को अपने पड़ाव और निवास के स्थान से हज्ज का एहराम बाँधेगा, और अपने हज्ज का एहराम बाँधने के समय उसी तरह स्नान करेगा और सुगंध लगाएगा जिस तरह कि उसने अपने उम्रा का एहराम बाँधते समय किया था, चुनाँचे वह हज्ज का एहराम बाँधने की नीयत करेगा और कहेगा : लब्बैका हज्जा, फिर सुप्रसिद्ध तल्बिया कहेगा।
इफ्ता के स्थायी समिति के विद्वानों का कहना है :
जिसने मीक़ात से उम्रा का एहराम बाँधा उसके द्वारा हज्ज का लाभ उठाते हुए, तो वह उम्रा करने के बाद अपने एहराम से हलाल हो जाएगा, और अब उसके लिए जद्दा या उसके अलावा जाने में कोई आपत्ति की बात नहीं है, फिर वह उसी स्थान से जहाँ वह उमा करने के बाद ठहरा हुआ है हज्ज का एहराम बाँधेगा।’’
फतावा स्थायी समिति – द्वितीय संग्रह’’ (10/76-77) से समाप्त हुआ।
शैख इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह ने फरमाया :
‘‘हलाल हाजी के लिए धर्मसंगत यह है कि वह तर्विया (आठवीं ज़ुलहिज्जा) के दिन अपने स्थान से एहराम बाँधे चाहे वह मक्का के अंदर हो या उसके बाहर हो या मिना में हो। क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम को जो उम्रा करके हलाल हो चुके थे आदेश दिया कि वे तर्विया के दिन अपने घरों से हज्ज का एहराम बाँधें।’’
‘‘मजमूओ फतावा इब्ने बाज़’’(16/140).
दूसरा :
चूँकि आप सातवें दिन उम्रा करेंगे, इसलिए आप उम्रा से फारिग होने के बाद अपने बाल छोटे करवाएं उसे मुँडाएं नहीं, ताकि आपका इतना बाल बाक़ी रहे जिसे आप हज्ज में मुँडा सकें। क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने साथियों को हज्जतुल वदाअ में हुक्म दिया था कि वे उम्रा के लिए अपने सिर के बाल छोटे करवाएं, क्योंकि उनका आगमन चौथी ज़ुल-हिज्जा की सुबह हुआ था। इससे पता चलता है कि इस स्थिति में बाल छोटे करवाना, मुँडाने से बेहतर है, ताकि हज्ज में बाल मुँडाया जा सके। अधिक लाभ के लिए फत्वा संख्या : (31822) देखें।
तीसरा :
हज्ज तमत्तुअ करनेवाले के लिए यौमुन्नहर (दसवीं ज़ुलहिज्जा के दिन) के कार्य तर्तीब के साथ यह हैं : जमरतुल अक़बा को कंकरी मारना, जानवर ज़बह करना, सिर के बाल मुँडाना या छोटे करवाना, तवाफ इफाज़ा और सई करना। यही अफज़ल और बेहतर है। क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ऐसे ही किया था। अतिरिक्त लाभ के लिए प्रश्न संख्या (106594) का उत्तर देखें।
यदि हाजी इनमें से कुछ कार्य पहले और कुछ कार्य पीछे कर दे, या कुछ कार्य यौमुन्नहर से विलंब कर दे, तो कोई हरज की बात नहीं है।
विद्वानों का इस बात पर इत्तिफाक़ है कि सिर के बाल मुँडाने को तश्रीक़ के अंतिम दिन तक विलंब करना जायज़ है, यदि उसने उसे इससे भी अधिक विलंब कर दिया तो उसके ऊपर कुछ विद्वानों के निकट एक दम (क़ुर्बानी) अनिवार्य है। देखिए : अल-मौसूअतुल फिक्हिय्या (10/12-13).
तथा आप इस बात के इच्छुक बनें कि आपका हज्ज किसी विद्वान या ज्ञान के छात्रों के साथ हो ताकि आप उससे हज्ज और उम्रा के मामलों में से जिस चीज़ के बारे में ज़रूरतमंद हों प्रश्न कर सकें।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर
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