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पाँचों समय की नमाज़ों की पाबंदी करने ओर उन्हें आदेश के अनुसार अदा करने वाले की विशेषता

السؤال: 238527

किताब ''कनज़ुल-आमाल'' की इन निम्नलिखित हदीसों की प्रामाणिकता क्या है, और क्या इन पर अमल किया जाएगाॽ

1- ''जो व्यक्ति क़यामत के दिन पांचों समय की नमाज़ों के साथ इस हाल में आएगा कि उसने उनके वुज़ू, उनके समय, उनके रुकूअ और सज्दे की रक्षा की होगा, उनमें कुछ भी कमी नहीं की होगी, तो वह इस स्थिति में आएगा कि उसके लिए अल्लाह के पास यह वादा होगा वह उसे दंडित नहीं करेगा। और जो व्यक्ति इस हाल में आया कि उसने उनमें कुछ कमी की होगी, तो उसके लिए अल्लाह के पास कोई वादा नहीं होगा; यदि वह चाहे तो उस पर दया करे, और यदि वह चाहे तो उसे दंडित करे।'' (इसे तबरानी ने मोजमुल-औसत में आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत किया है).

2- ''जिसने पाँच समय की नमाज़ें पढ़ीं, और उन्हें पूरा किया और उन्हें स्थापित किया, तथा उन्हें उनके निर्धारित समय पर पढ़ा, तो वह क़यामत के दिन इस हाल में आएगा कि उसके लिए अल्लाह पर एक वादा होगा कि वह उसे दंडित नहीं करेगा। और जिसने नमाज़े नहीं पढ़ी और उन्हें स्थापित नहीं किया, तो वह क़यामत के दिन इस हाल में आएगा कि उसके लिए अल्लाह पर कोई वादा नहीं होगा; यदि वह चाहे तो उसे क्षमा कर दे, और यदि वह चाहे तो उसे दंडित करे।'' (इसे सईद बिन मनसूर ने अपनी सुनन में उबादा बिन सामित रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है)।

3- ''अल्लाह महिमावान ने फरमायाः ''मेरे बंदे के लिए मुझपर एक वादा है, अगर वह समय पर नमाज़ स्थापित करे, कि मैं उसे दंडित नहीं करूंगा और यह कि मैं उसे बिना किसी हिसाब के स्वर्ग में दाखिल करूंगा।" (इसे हाकिम ने अपनी तारीख़ में आयशा रज़ियल्लाह अन्हा से रिवायत किया है)।

الجواب

الحمد لله والصلاة والسلام على رسول الله وآله وبعد.

जहाँ तक उबादा रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस का संबंध है :

अबू दाऊद (हदीस संख्या : 1420) और नसाई (हदीस संख्या : 461) ने उबादा बिन अस-सामित रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा: मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को फरमाते हुए सुनाः ''पाँच नमाज़ें हैं जो अल्लाह ने अपने बंदों पर अनिवार्य की हैं। अतः जिसने उन्हें इस तरह अदा किया होगा कि उनको महत्वहीन समझते हुए उनमें से कुछ भी बर्बाद नहीं किया होगा, तो उसके लिए अल्लाह के पास यह वादा है कि वह उसे स्वर्ग में प्रवेश करेगा। और जिसने उन्हें अदा नहीं किया, तो उसके लिए अल्लाह के पास कोई वादा नहीं होगा; यदि वह चाहे तो उसे दंड दे और चाहे तो उसे स्वर्ग में प्रवेश करे।'' इसे अलबानी ने ''सहीह अबू दाऊद'' में सहीह कहा है।

तथा अबू दाऊद (हदीस संख्या : 425) और अहमद (हदीस संख्या : 22704) ने उबादा ही से इन शब्दों के साथ रिवायत किया है : “अल्लाह तआला ने पाँच नमाज़ें अनिवार्य की हैं, जिसने उनके लिए अच्छे ढंग से वुज़ू किया और उन्हें उनके समय पर पढ़ा, और उनके रुकूअ को पूरा किया, और खुशूअ (विनम्रता) को ध्यान में रखा, तो अल्लाह पर उसके लिए यह वादा है कि वह उसे क्षमा कर देगा। और जिसने ऐसा नहीं किया तो उसके लिए अल्लाह पर कोई वादा नहीं है; यदि वह चाहे तो उसे क्षमा कर दे और चाहे तो उसे दंड दे।''

इसे अलबानी ने ''सहीह अबू दाऊद'' में सहीह कहा है, इसी तरह अल-मुसनद के अनुसंधात कर्ताओं ने भी इसे सहीह करार दिया है।

जहाँ तक आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा की हदीस का संबंध है:

तो उसे तबरानी ने ''अल-औसत'' (हदीस संख्या : 4012) में अब्दुल्लाह बिन अबी रूमान अल-इस्कंदरानी के माध्यम से रिवायत किया है कि उन्होंने कहाः हमें बताया ईसा बिन वाक़िद ने, मुहम्मद बिन अम्र अल्लैसी से, उन्होंने अबू सलमह से, और उन्होंने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से, और उन्होंने अल्लाह के रसूल सल्ल्लाहु अलैहि व सल्लम से कि आपने फरमाया : "जिसने वित्र की नमाज़ नहीं पढ़ी तो उसकी नमाज़ नहीं है।'' इस बात की खबर आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा तक पहुंची, तो उन्होंने कहा: यह अबुल-क़ासिम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से किसने सुना हैॽ अल्लाह की क़सम! अभी बहुत समय नहीं बीता है और न मैं भूली हूँ। बल्कि अबुल-क़ासिम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ''जो व्यक्ति क़यामत के दिन पांचों समय की नमाज़ों के साथ इस हाल में आएगा कि उसने उनके वुज़ू, उनके समय, उनके रुकूअ और सज्दे की रक्षा की होगा, उनमें कुछ भी कमी नहीं की होगी, तो वह इस स्थिति में आएगा कि उसके लिए अल्लाह के पास यह वादा होगा कि वह उसे दंडित नहीं करेगा। और जो व्यक्ति इस हाल में आया कि उसने उनमें कुछ कमी की होगी, तो उसके लिए अल्लाह के पास कोई वादा नहीं होगा; यदि वह चाहे तो उस पर दया करे और चाहे तो उसे दंडित करे।''

इसे रिवायत करने के बाद तबरानी ने कहा :

''इसे मुहम्मद (बिन अम्र अल्लैसी) से ईसा (बिन वाक़िद) के अलावा किसी और ने नहीं रिवायत किया है, अब्दुल्लाह (बिन अबी रूमान) उन दोनों से रिवायत करने में अकेले हैं।''

शैख अलबानी रहिमहुल्लाह ने फरमाया :

''मैं कहता हूँ : वह अल-मुआफिरी हैं। ज़हबी ने कहा : ''उन्हें एक से अधिक विद्वानों ने ज़ईफ कहा है, उन्होंने एक झूठी हदीस रिवायत की है।''

मैं कहता हूँ : मुझे लगता है कि वह इसी हदीस की ओर संकेत कर रहे हैं, क्योंकि यह स्पष्ट रूप से झूठी हदीस है। हाफ़िज़ इब्ने हजर ने कहा : दारकुतनी ने उन्हें वाही (कमज़ोर व अनाधार) कहा है। इब्ने यूनुस ने कहा: वह ज़ईफुल-हदीस हैं (अर्थात ज़ईफ व कमज़ोर हदीसें रिवायत करने वाले हैं), और उन्होंने मुनकर हदीसें रिवायत की हैं।''

मैं कहता हूँ : उनके शैख (अध्यापक) ईसा बिन वाक़िद हैं; मुझे उनकी कोई जीवनी नहीं मिली है। इसी कराण अल-हैसमी ने भी ''मजमउज़-ज़वाइद'' (1/293) में उन्हें दोषपूर्ण करार दिया है।''

''सिलसिलतुल-अहादीस अज़-ज़ईफ़ा (11/371)'' से उद्धरण समाप्त हुआ।

इस हदीस में मुनकर केवल यह वाक्य है किः (जिसने वित्र की नमाज़ नहीं पढ़ी, उसकी नमाज़ नहीं है)। रही बात हदीस के शेष भाग की, तो इसी के अर्थ में इसकी शवाहिद हैं, जैसा कि उबादा की हदीस में गुज़र चुका है।

इसकी शाहिद (समर्थक) वह हदीस भी है जिसे इमान अहमद (हदीस संख्या : 18345) ने हनज़ला अल-कातिब से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को फरमाते हुए सुना : “जिसने पाँचों समय की नमाज़ों कीः उनके रुकू और सज्दे, उनके वुज़ू और समय का ध्यान रखते हुए, पाबंदी की तथा उसे इस बात का ज्ञान (विश्वास) है कि वे अल्लाह की ओर से सत्य हैं, तो वह जन्नत में प्रवेश करेगा।'' या आपने फरमाया किः “उसके लिए जन्नत अनिवार्य हो गई।”

 अल-मुसनद के अनुसंधान कर्ताओं ने कहा : “यह हदीस अपने शवाहिद के साथ सहीह है।”

अबू दाऊद (हदीस संख्या : 429) ने अबुद-दर्दा से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा: अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “पाँच चीज़ें ऐसी हैं, जिन्हें अगर कोई व्यक्ति ईमान विश्वास के साथ अदा करता है, तो वह स्वर्ग में प्रवेश करेगाः जिसने पाँच दैनिक नमाज़ों कीः उनके वुज़ू, उनके रुकू और सज्दे तथा उनके समय का ध्यान रखते हुए पाबंदी की, रमज़ान के रोज़े रखे, अल्लाह के घर काबा का हज्ज किया यदि वह वहाँ तक पहुँचने में सक्षम है, तथा  स्वेच्छा एवं खुशी से ज़कात दी की और अमानत अदा की ।''

अलबानी ने इस दीस को हसन करार दिया है।

जहाँ तक आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा की इस हदीस का संबंध है किः '''मेरे बंदे के लिए मुझपर यह वादा है, अगर वह समय पर नमाज़ स्थापित करे, कि मैं उसे दंडित नहीं करूँगा और यह कि मैं उसे बिना किसी हिसाब के स्वर्ग में दाखिल करूँगा।"

तो अल-मुत्तक़ी अल-हिंदी रहिमहुल्लाह ने ''कन्ज़ुल-उम्माल'' (7/312) में इसे हाकिम की ओर उनकी तारीख में मंसूब किया है।

हाकिम रहिमहुल्लाह की ''तारीख नीसाबूर'' एक महान पुस्तक है, लेकिन इसकी गिन्ती मुसलमानों की उन पुस्तकों में होती है जो खो गई हैं, और – जहाँ तक हम जानते हैं – वर्तमान समय में उसका केवल सारांश रूप उपलब्ध है, जो अहमद बिन मुहम्मद बिन अल-हसन द्वारा किया गया है, जिन्हें अल-खलीफा अन-नीसाबूरी के रूप में जाना जाता है, और यह हदीस उस सारांश में नहीं है।

और एकमात्र हाकिम का इस हदीस को अपनी तारीख में रिवायत करना, इसके ज़ईफ़ होने और साबित न होने का सूचक है, विशेष रूप से इस वाक्यः (और यह कि मैं उसे बिना किसी हिसाब के स्वर्ग में दाखिल करूँगा) का हमें कोई पुष्टि करने वाला प्रमाण (शाहिद) नहीं मिला। और ऊपर उद्धृत उबादह की सहीह हदीस पर्याप्त है।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

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