एक बीमार व्यक्ति है, जो अगर खड़ा हो गया, तो वह बैठ नहीं सकता। और यदि वह बैठ गया, तो वह खड़ा नहीं हो सकता। वह कैसे नमाज़ पढ़े? क्या वह पूरी नमाज़ के दौरान बैठा रहे, अथवा वह पूरी नमाज़ के दौरान खड़ा रहे?
उस बीमार व्यक्ति की नमाज़ का तरीक़ा जो अगर खड़ा है तो वह बैठने में सक्षम नहीं है, और यदि वह बैठा हुआ है तो वह खड़े होने में सक्षम नहीं है?
प्रश्न: 263252
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
सर्व प्रथम :
नमाज़ के वाजिबात और अरकान (अनिवार्य और आवश्यक भागों) के बारे में मूल नियम यह है कि : नमाज़ी के ऊपर (नमाज़ के वाजिबात और अरकान में से) उस चीज़ की अदायगी करना अनिवार्य है जिसकी वह ताक़त रखता है, और उनमें से जिसकी वह क्षमता नही रखता है वह उससे समाप्त हो जाएगा।
इस आधार पर, यदि नमाज़ी खड़े होकर प्रार्थना शुरू करने में सक्षम है, तो उसके लिए यही करना अनिवार्य है। फिर वह पूर्ण रूप से रुकूअ करेगा यदि वह ऐसा करने में सक्षम है। यदि वह ऐसा करने में सक्षम नहीं है, तो वह अपनी क्षमता के अनुसार झुकेगा।
फिर यदि वह ज़मीन पर सज्दा (साष्टांग प्रणाम) करने में सक्षम है, तो उसके लिए यही करना अनिवार्य है।
यदि वह ज़मीन पर सज्दा करने में सक्षम नहीं है, तो वह (ज़मीन या कुर्सी पर) बैठ जाएगा फिर वह सज्दे के लिए झुकेगा।
यदि वह फिर से खड़े होने में सक्षम नहीं है, तो वह अपनी नमाज़ को बैठकर पूरी करेगा, और रुकूअ के समय झुक जाया करेगा, और अगर वह सक्षम है तो ज़मीन पर सज्दा करेगा।
यदि वह ऐसा करने में सक्षम नहीं है, तो वह सज्दे के लिए झुक जाया करेगा, और वह सज्दे के लिए रुकूअ से अधिक झुकेगा।
इस तरह से, वह नमाज़ी अल्लाह सर्वशक्तिमान के इस कथन का अनुपालन करने वाला होगा :
فَاتَّقُوا اللَّهَ مَا اسْتَطَعْتُم
[التغابن:16]
‘‘अतएव तुम अपनी यथाशक्ति अल्लाह से डरते रहो।’’ (सूरतुत्-तग़ाबुनः 16)
तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के इस फरमान का : ‘‘जब मैं तुम्हें किसी चीज़ का आदेश दूँ तो तुम अपनी शक्ति भर उसे करो।’’ इसे बुखारी (हदीस संख्याः 7288) और मुस्लिम (हदीस संख्याः 1337) ने रिवायत किया है।
अल्लामा ख़लील मालिकी की पुस्तक “मुख्तसर खलील” में आया है : “यदि वह सब कुछ करने में सक्षम है, लेकिन अगर उसने सज्दा किया तो वह फिर से उठने में सक्षम नहीं होगा, तो वह एक रकअत पूरी करेगा, फिर बैठ जाएगा।”
अल्लामा अल-खरशी अपनी शरह (शरह मुख्तसर खलील 1/298) में कहते हैं : “अर्थातः यदि नमाज़ पढ़ने वाला नमाज़ के सभी अरकान को करने में सक्षम है, जैसे- खड़ा होना (क़ियाम करना), क़िराअत (क़ुरआन पढ़ना), रुकूअ एवं सज्दा तथा उन दोनों से उठना, और जल्सा (बैठना), लेकिन अगर वह बैठ जाता है तो वह क़ियाम के लिए उठने में सक्षम नहीं होगाः तो वह पहली रकअत पूर्ण रूप से खड़े हो कर पढ़ेगा। जबकि अपनी नमाज़ का शेष हिस्सा बैठकर पूरा करेगा। इसी मत के पक्षधर अल-लख्मी, तूनिसी और इब्ने यूनुस भी हैं।
यह भी कहा गया है किः वह अपनी संपूर्ण नमाज़ खड़े होकर संकेत के साथ पढ़ेगा, सिवाय अंतिम रकअत के, जिसमें वह रुकूअ और सज्दा करेगा।” उद्धरण समाप्त हुआ।
दूसरा:
यदि नमाज़ पढ़ने वाला खड़े होने और लेटने में सक्षम है, लेकिन वह बैठने में सक्षम नहीं है, तो वह खड़े होकर नमाज़ पढ़ेगा, और रुकूअ एवं सज्दे के लिए इशारा करेगा, तथा वह खड़े होकर तशह्हुद करेगा और सलाम फेर देगा।
अल्लामा ज़करिया अल-अनसारी अश-शाफ़ेई ने “असनल-मतालिब” (1/146) में कहा:
“जो कोई भी केवल खड़े होने और लेटने में सक्षम हैः वह बैठने के बजाय खड़ा होगा … क्योंकि खड़ा होना बैठने की तरह है और कुछ अतिरिक्त है, और रुकूअ और सज्दे का उसके बजाय संकेत करेगा और खड़े होकर तशह्हुद का पाठ करेगा। और वह लेटेगा नहीं।” उद्धरण का अंत हुआ।
तथा “हाशियतुल-इबादी अला तुहफ़तिल-मुहताज” (2/23) में है:
“यदि वह केवल खड़े होने या लेटने में सक्षम है, अर्थात् वह बैठने में सक्षम नहीं है, तो वह अनिवार्य रूप से खड़ा होगा; क्योंकि खड़ा होना दरअसल बैठना तथा कुछ अतिरिक्त है, और वह खड़े होकर अपनी यथाशक्ति रुकूअ और सज्दे का संकेत करेगा . . . तथा वह खड़े होकर तशह्हुद पढ़ेगा और सलाम फेरेगा, और वह लेटेगा नहीं।” उद्धरण का अंत हुआ।
तथा अल्लामा अल-खरशी अल-मालिकी (1/297) ने कहा :
“वह व्यक्ति जो नमाज़ के सभी अरकान (आवश्यक कार्यों) को करने में असमर्थ है, सिवाय खड़े होने के, जिसमें वह सक्षम हैः तो वह अपनी नमाज़ के सभी कार्य खड़े होकर करेगा, और अपने सज्दे के लिए रुकूअ से अधिक झुकेगा।” उद्धरण समाप्त हुआ।
यदि वह खड़े होने में सक्षम नहीं है, तो वह बैठकर नमाज़ पढ़ेगा, और रुकूअ तथा सज्दे के लिए संकेत करेगा। यदि वह ज़मीन पर सज्दा कर सकता है, तो उसके लिए ऐसा करना अनिवार्य है।
इब्ने क़ुदामा “अल-मुग़्नी” (2/570) में कहते हैं :
“विद्वानों ने इस बात पर सहमति व्यक्त की है कि जो खड़े होने में सक्षम नहीं हैः वह बैठकर नमाज़ पढ़ सकता है।” उद्धरण समाप्त हुआ।
हाशियतुद्-दसूक़ी अल-मालिकी (2/475) में है कि जो व्यक्ति खड़े होने में असमर्थ है “वह बैठकर नमाज़ अदा करेगा उसी स्थिति में रुकूअ और सज्दा करेगा।” उद्धरण का अंत हुआ।
तीसरा :
यदि कोई ऐसा बीमार व्यक्ति है जो या तो पूरी नमाज़ के दौरान खड़ा हो सकता है या पूरी नमाज़ के दौरान बैठ सकता है, तो वह बैठे हुए नमाज़ पढ़ेगा। इस बात का पता इस तथ्य से चलता है किः
इस्लामी शरीयत ने कुछ परिस्थितियों में क़ियाम (खड़े होने) के रुक्न की बाध्यता को समाप्त कर दिया है, जैसे कि नफ़्ल नमाज़, तथा क़ियाम करने में सक्षम व्यक्ति की नमाज़ ऐसे बीमार इमाम के पीछे जो बैठकर नमाज़ पढ़ा रहा है, तो ऐसी स्थिति में वह क़ियाम को छोड़ देगा और अपने इमाम की तरह बैठकर नमाज़ पढ़ेगा।
शैखुल-इस्लाम इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह कहते हैं : “क़ियाम (खड़ा होना) नमाज़ का एक हल्का रुक्न है जो नफ्ल नमाज़ों में सामान्य रूप से समाप्त हो जाता है, और कुछ जगहों (परिस्थितियों) में फर्ज़ (अनिवार्य) नमाज़ों में भी समाप्त हो जाता है।” “शर्हुल-उम्दा” (4/515) से उद्धरण समाप्त हुआ।
क़ियाम और जुलूस (यानी खड़े होने और बैठने) के बीच टकराव की स्थिति में, बैठकर नमाज़ पढ़ने को प्राथमिकता दी जाएगी, विशेषकर बैठने की स्थिति में वह अपनी नमाज़ में दूसरे अरकान को भी अदा कर सकता है, जैसे सज्दा, दोनों सज्दों के बीच बैठना, और तशह्हुद का पाठ करने के लिए बैठना। इसलिए यह खड़े होकर पूरी नमाज़ पढ़ने पर प्राथमिकता रखता है।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर