पिछले रमज़ान में, जबकि मैं रोज़ा रखे हुई थी, मैंने क़सम खाई थी कि मैं उम्रा करूंगी। लेकिन मैं उम्रा करने में सक्षम नहीं हो सकी। क्या मुझे तीन दिन रोज़ा रखना होगा या नहींॽ
उस व्यक्ति पर क्या अनिवार्य है जिसने एक निश्चित समय पर कुछ करने की क़सम खाई, परंतु उसने ऐसा नहीं कियाॽ
प्रश्न: 291027
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
यदि आपने रमज़ान के महीने में उम्रा करने की क़सम खाई, फिर वह महीना समाप्त हो गया और आपने उम्रा नहीं किया, तो आपने अपनी क़सम तोड़ दी है और आपको कफ़्फ़ारा देना होगा।
इब्ने क़ुदामा रहिमहुल्लाह ने फरमाया : “अगर क़सम कुछ करने पर खाई गई थी और उसने उसे नहीं किया, और उसकी उस क़सम का शब्द, या उसका इरादा या उसकी परिस्थिति की प्रासंगिकता यह दर्शाती है कि उसकी क़सम एक विशिष्ट समय से जुड़ी हुई थी, फिर वह समय (बिना कुछ किए) बीत गया, तो उसकी क़सम टूट गई और उसे कफ़्फ़ारा देना होगा।” “अल-मुगनी” (9/494) से उद्धरण समाप्त हुआ।
आपको कफ़्फ़ारा (प्रायश्चित) के अलावा कोई अन्य चीज़ करने की ज़रूरत नहीं है।
क़सम (शपथ) तोड़ने का कफ़्फ़ारा : एक दास को मुक्त करना, या दस गरीबों को खाना खिलाना, या उन्हें कपड़े देना है। जो व्यक्ति इन कामों को करने में असमर्थ है, वह तीन दिन रोज़े रखेगा; क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान है :
لا يُؤَاخِذُكُمُ اللَّهُ بِاللَّغْوِ فِي أَيْمَانِكُمْ وَلَكِنْ يُؤَاخِذُكُمْ بِمَا عَقَّدْتُمُ الأَيْمَانَ فَكَفَّارَتُهُ إِطْعَامُ عَشَرَةِ مَسَاكِينَ مِنْ أَوْسَطِ مَا تُطْعِمُونَ أَهْلِيكُمْ أَوْ كِسْوَتُهُمْ أَوْ تَحْرِيرُ رَقَبَةٍ فَمَنْ لَمْ يَجِدْ فَصِيَامُ ثَلاثَةِ أَيَّامٍ ذَلِكَ كَفَّارَةُ أَيْمَانِكُمْ إِذَا حَلَفْتُمْ وَاحْفَظُوا أَيْمَانَكُمْ كَذَلِكَ يُبَيِّنُ اللَّهُ لَكُمْ آيَاتِهِ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ
المائدة : 89
“अल्लाह तआला तुम्हारी क़समों में व्यर्थ क़सम पर तुम्हारी पकड़ नहीं करता है, लेकिन तुम्हारी पकड़ उन क़समों पर करता है जिनको तुम मज़बूत कर दो। तो उसका कफ्फारा दस गरीबों को औसत दर्जे का खाना खिलाना है जो तुम अपने घर वालों को खिलाते हो, या उन्हें कपड़े देना, या एक गर्दन (गुलाम या लौंडी) आज़ाद करना है, और जो इसमें सक्षम न हो तो तीन दिन के रोज़े (रखने) हैं, ये तुम्हारी क़समों का कफ्फारा है जबकि तुम क़सम खा लो, और तुम अपनी क़समों का ध्यान रखो, इसी तरह अल्लाह तुम्हारे लिए अपने अहकाम बयान करता है ताकि तुम आभारी (कृतज्ञ) बनो।” (सूरतुल माइदा : 89).
तथा प्रश्न संख्या (45676) का उत्तर भी देखें।
और अल्लाह ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर
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