उस आदमी का क्या हुक्म है, जिसकी नमाज़ के दौरान कोई दुर्घटना घटी और उसने अपने आपको उसके लिए बलिदान करते हुए, अपनी नमाज़ को बाधित नहीं किया। उदाहरण के लिए : यदि मस्जिद में नमाज़ के दौरान भूकंप आया और लोग भाग गए, लेकिन कुछ लोग अपनी जगह पर बने रहे, तथा इमाम ने नमाज़ को बाधित नहीं किया और मस्जिद की छत उन पर गिर गई और वे मर गए। जो लोग भूकंप आने के दौरान नमाज़ न छोड़ने के कारण मर गए, क्या वे शहीद हैं या आत्महत्या करने वाले हैंॽ
भूकंप आने या आग लगने की स्थिति में नमाज़ को बाधित करने का हुक्म और यदि वह अपनी नमाज़ जारी रखता है और मर जाता है, तो उसका हुक्म क्या हैॽ
प्रश्न: 326070
उत्तर का सारांश
जिस व्यक्ति को अपनी जान जाने का डर है, या किसी निर्दोष की जान का खतरा है जिसे वह बचा सकता है : तो उसके लिए अपनी नमाज़ को जारी रखना जायज़ नहीं है, और वह ऐसा करने की वजह से गुनाहगार होगा। फिर यदि वह मर जाता है या घायल हो जाता है, तो वह अपने आपको विनाश में डालने वाला माना जाएगा।
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
अगर किसी व्यक्ति की नमाज़ के दौरान भूकंप या आग लगने जैसी कोई दुर्घटना घटित हो जाए, और उसे इस बात की प्रबल संभावना है कि वह उसकी चपेट में आ जाएगा और अगर वह नमाज़ छोड़कर बाहर निकल जाता है, तो वह बच जाएगा : तो उसके लिए वहाँ से भागना और बचाव तलाश करना लाज़िम है। फिर वह अपनी नमाज़ पूरी करे, या दुर्घटना के अनुसार उसे बाधित कर दे। लेकिन उसके लिए विनाश की संभावना के साथ वहाँ बना रहना जायज़ नहीं है। अन्यथा, वह खुद को विनाश में डालने वाला समझा जाएगा। इसी तरह उसके लिए किसी दूसरे को भी विनाश, जैसे कि डूबने, या जलने, या कुएँ में गिरने, से बचाने के लिए अपनी नमाज़ को बाधित करना अनिवार्य है।
इस विषय में मूल सिद्धांत अल्लाह का यह फरमान है :
وَلا تُلْقُوا بِأَيْدِيكُمْ إِلَى التَّهْلُكَةِ وَأَحْسِنُوا إِنَّ اللَّهَ يُحِبُّ الْمُحْسِنِينَ البقرة/195
"अपने आपको विनाश में न डालो और नेकी करो। निःसंदेह अल्लाह नेकी करने वालों को पसंद करता है।" (सूरतुल बक़रा : 195)
तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का यह फरमान है :
“किसी को नुक़सान पहुँचाना या (प्रतिशोध में) एक दूसरे को नुक़सान पहुँचाना जायज़ नहीं है।" इसे अहमद (हदीस संख्या : 2865) और इब्ने माजा (हदीस संख्या : 2341) ने रिवायत किया है और अलबानी ने “सहीह इब्ने माजा” में इसे सही कहा है।
“कश्शाफुल-क़िनाअ” (1/380) में कहा गया है : “एक काफिर व्यक्ति, जिसका जीवन ज़िम्मी होने, या युद्धविराम संधि या संरक्षण के वचन के कारण सुरक्षित है, उसे कुएँ में गिरने और इसी तरह के अन्य खतरे, जैसे कि उसकी ओर बढ़ रहे साँप, से बचाना उसी तरह अनिवार्य है, जैसे कि एक मुसलमान की उन चीज़ों से रक्षा करना अनिवार्य है, क्योंकि दोनों की जान शरीयत के नियम के अनुसार सुरक्षित है।
तथा एक डूबने वाले व्यक्ति और उसी तरह के अन्य, जैसे आग में जलने वाले व्यक्ति को बचाना अनिवार्य है। चुनाँचे वह इसके लिए अपनी नमाज़ को बाधित कर देगा, चाहे वह नमाज़ फ़र्ज़ (अनिवार्य) हो या नफ़्ल। इसका प्रत्यक्ष मतलब यही है कि : (वह नमाज़ को बाधित कर देगा) भले ही उसके लिए शेष समय तंग (कम) हो। क्योंकि बाद में नमाज़ की क़ज़ा करके उसकी पूर्ति हो सकती है, लेकिन डूबने वाले व्यक्ति और इसी तरह के अन्य लोगों का मामला इसके विपरीत है। [अर्थात उन्हें तुरंत बचाया जाना आवश्यक है, उसे विलंबित नहीं किया जा सकता]।
यदि वह डूबने वाले और इसी तरह के अन्य लोगों को बचाने के लिए अपनी नमाज़ को बाधित करने से इनकार करता है : तो वह गुनाहगार होगा। जबकि उसकी नमाज़ सही (मान्य) है, जैसे कि रेशम से बनी पगड़ी में नमाज़ पढ़ना।” उद्धरण समाप्त हुआ।
इब्ने रजब अल-हंबली रहिमहुल्लाह ने कहा : “क़तादा ने कहा : यदि उसका कपड़ा चोरी हो जाए, तो उसे चोर का पीछा करना चाहिए और अपनी नमाज़ छोड़ देनी चाहिए।
तथा अब्दुर-रज़्ज़ाक़ ने अपनी किताब में मा’मर के माध्यम से हसन और क़तादा से एक ऐसे आदमी के बारे में रिवायत किया है : जो नमाज़ पढ़ रहा था, तो उसे डर हुआ कि उसका चौपाया चला जाएगा, या दरिंदा उसपर हमला कर देगाॽ तो उन दोनों ने कहा : वह नमाज़ छोड़ देगा।
तथा मा’मर से वर्णित है कि उन्होंने क़तादा से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : मैंने उनसे पूछा : एक आदमी नमाज़ पढ़ रहा है और वह एक बच्चे को एक कुएँ पर देखता है और डरता है कि वह बच्चा उसमें गिर जाएगा, तो क्या वह नमाज़ छोड़ देगाॽ
उन्होंने कहा : हाँ।
मैंने कहा : यदि वह एक चोर को देखता है जो उसके जूते लेना चाहता हैॽ
उन्होंने कहा : वह नमाज़ छोड़ देगा।
सुफयान का दृष्टिकोण यह है कि : यदि कोई विकट स्थिति उत्पन्न हो जाए और आदमी नमाज़ पढ़ रहा है : तो उसे नमाज़ को छोड़कर उससे निपटना चाहिए। इसे अल-मुआफ़ा ने उनसे रिवायत किया है।
ऐसे ही अगर वह अपने मवेशी पर, या अपने चौपाए (सवारी) पर सैलाब (बाढ़) से डरता है।
इमाम मालिक का दृष्टिकोण यह है कि : यदि किसी का चौपाया नमाज़ पढ़ते समय छूट गया, तो वह निकट होने की स्थिति में उसके पास चलकर जाएगा, यदि वह उसके सामने, या उसके दाईं ओर, या उसके बाईं ओर है। और अगर वह दूर चला गया है, तो वह नमाज़ को बाधित कर देगा और उसे तलाश करेगा।
हमारे साथियों का दृष्टिकोण यह है कि : अगर वह किसी को डूबते हुए, या जलते हुए, या दो बच्चों को लड़ते हुए और इसी तरह की अन्य चीज़ें देखे, और वह उसका निवारण करने में सक्षम है : तो वह अपनी नमाज़ को बाधित कर देगा और उसका निवारण करेगा।
उनमें से कुछ ने उसे नफ़्ल नमाज़ के साथ प्रतिबंधित किया है। लेकिन अधिक सही दृष्टिकोण यह है कि वह फ़र्ज़ (अनिवार्य) नमाज़ और अन्य दोनों पर लागू होता है।
तथा अहमद ने, एक ऐसे व्यक्ति के बारे में, जो उस व्यक्ति के साथ लगा हुआ है, जो उसका क़र्ज़दार है और वे दोनों नमाज़ पढ़ना शुरू कर देते हैं, फिर वह ऋणी भाग जाता है, जबकि वह नमाज़ पढ़ रहा होता है, कहा : वह उसकी तलाश में निकलेगा।
तथा इमाम अहमद ने यह भी कहा : यदि वह किसी बच्चे को कुएँ में गिरते हुए देखता है, तो अपनी नमाज़ को बाधित कर दे और उस बच्चे को पकड़ ले।
हमारे कुछ साथियों ने कहा : वह अपनी नमाज़ को केवल उस समय बाधित करेगा, जब उसे बचाने के लिए उसे अधिक कार्य करने की आवश्यकता है। अगर वह काम मामूली है, तो उससे उसकी नमाज़ अमान्य नहीं होगी।
अबू बक्र ने, उस व्यक्ति के बारे में जो अपने क़र्ज़दार के पीछे निकला है, कहा : वह वापस आकर अपनी नमाज़ को जारी रखेगा जहाँ उसने छोड़ा था।
क़ाज़ी ने इसका मतलब यह लिया है कि इसमें मामूली हरकत किया गया था।
तथा यह भी कहा जा सकता है कि : वह अपने धन के प्रति डर रहा था। इसलिए उसके कार्य को माफ़ कर दिया जाएगा, भले ही वह अधिक हो।” इब्ने रजब की फत्हुल-बारी (9 / 336-337) से उद्धरण समाप्त हुआ।
सारांश यह कि :
जिस व्यक्ति को अपनी जान जाने का डर है, या किसी निर्दोष की जान का खतरा है जिसे वह बचा सकता है : तो उसके लिए अपनी नमाज़ को जारी रखना जायज़ नहीं है, और वह ऐसा करने की वजह से गुनाहगार होगा। फिर यदि वह मर जाता है या घायल हो जाता है, तो वह अपने आपको विनाश में डालने वाला माना जाएगा।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर