हज्ज का हुक्म क्या है, तथा उसकी अनिवार्यता का इंकार करने वाले का क्या हुक्म है ?
हज्ज का हुक्म
प्रश्न: 34972
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
हज्ज इस्लाम के स्तंभों में से एक स्तंभ है।अतः जिस आदमी ने उसका इंकार किया या उससे द्वेष और बुग़्ज़ रखा तो वह काफिर है, उस से तौबा करवाया जायेगा, यदि वह तौबा कर लेता है तो ठीक है, अन्यथा उसे क़त्ल कर दिया जायेगा। तथा हज्ज करने पर सक्षम आदमी के ऊपर अनिवार्य है कि वह हज्ज के फरीज़ा की अदायगी में शीघ्रता से काम ले ; क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान है:
وَلِلهِ عَلَى النَّاسِ حِجُّ الْبَيْتِ مَنِ اسْتَطَاعَ إِلَيْهِ سَبِيلًا وَمَنْ كَفَرَ فَإِنَّ اللهَ غَنِيٌّ عَنِ الْعَالَمِينَ [آل عمران : 97]
"अल्लाह तआला ने उन लोगों पर जो उस तक पहुँचने का सामर्थ्य रखते हैं इस घर का हज्ज करना अनिवार्य कर दिया है, और जो कोई कुफ्र करे (न माने) तो अल्लाह तआला (उस से बल्कि) सर्व संसार से बेनियाज़ है।" (सूरत आल-इम्रान : 97)
और अल्लाह तआला ही तौफीक़ प्रदान करने वाला है।
स्रोत:
इफ्ता और वैज्ञानिक अनुसंधान की स्थायी समिति के फतावा (11/11)