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कुछ न करने की क़सम खाने तथा अपनी क़सम न तोड़ने या उसका प्रायश्चित न करने की क़सम खाने का क्या हुक्म हैॽ

प्रश्न: 350692

एक बहन ने मुझसे एक प्रश्न पूछा। उसने कहा : मैंने क़सम खाई थी कि मैं कोई अनुमेय चीज़ नहीं करूँगी। साथ ही मैंने यह क़सम खाई थी कि अगर मैंने क़सम तोड़ दी, तो मैं उसका प्रायश्चित नहीं करूँगी। दूसरे शब्दों में, उसने यह कहा : “अल्लाह की क़सम! मैं ऐसा और ऐसा नहीं करूँगी, और अल्लाह की क़सम! मैं प्रायश्चित नहीं करूँगी ताकि मैं उसे कर सकूँ।” फिर उसने वह काम कर लिया। तो उसे क्या करना चाहिएॽ क्या उसे दो कफ़्फ़ारा (प्रायश्चित) भुगतान करना पड़ेगाॽ

उत्तर का पाठ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

जिस व्यक्ति ने कोई चीज़ न करने की क़सम खाई, फिर उसे कर लिया, तो उसपर क़सम का कफ़्फ़ारा है। और यह वाजिब है।

यदि उसने यह क़सम खाई है कि वह क़सम नहीं तोड़ेगा, या उसने यह क़सम खाई है कि उसे करने के लिए वह प्रायश्चित नहीं करेगा, तो उसपर एक और कफ़्फ़ारा (प्रायश्चित) अनिवार्य है। इस प्रकार उसे दो कफ़्फ़ारा देना (प्रायश्चित करना) पड़ेगा।

अद-दरदीर ने "अश-शरहुस-सग़ीर" (2/217) में कहा : "(या) उसने क़सम खाई कि वह ऐसा और ऐसा नहीं करेगा, तथा (उसने क़सम खाई कि वह क़सम नहीं तोड़ेगा), फिर उसने अपनी क़सम तोड़ दी, जैसे कि उसने कहा : अल्लाह की क़सम! मैं ज़ैद से बात नहीं करूँगा। अल्लाह की क़सम! मैं क़सम नहीं तोड़ूँगा। फिर उसने उससे बात कर ली; तो उसपर दो कफ़्फ़ारा अनिवार्य है : एक कफ़फ़ारा अपनी मूल क़सम को तोड़ने के लिए, तथा दूसरा कफ़्फ़ारा उस क़सम को तोड़ने के लिए।” उद्धरण समाप्त हुआ।

कफ़्फ़ारा (प्रायश्चित) दस ग़रीबों को खाना खिलाना या उन्हें कपड़े पहनाना है। जो कोई ऐसा करने में सक्षम नहीं है, उसे तीन दिन रोज़ा रखना चाहिए।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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