जब मैं छोटा था, तो मैं एक मस्जिद में क़ुरआन याद करता था। हम रंगीन ‘यासीन’ चतुर्थ भाग से क़ुरआन याद करते थे। जब हमारे शैख (अध्यापक) ने दूसरी मस्जिद में जाने का इरादा किया, तो उन्होंने उन प्रतियों को हममें वितरित कर दिया और हमें आदेश दिया कि हम उन्हें अपने साथ दूसरी मस्जिद में लेकर आएँ; ताकि हम उसमें इसका पाठ पूरा करें और क़ुरआन की वे प्रतियाँ पहली मस्जिद के बजाय इसमें रहेंगी। कुछ समय बाद दूसरी मस्जिद में भी क़ुरआन के हल्क़े (मंडलियाँ) बंद हो गए, और अब कोई भी इसमें नहीं पढ़ रहा है। इसलिए मैं जाकर उस क़ुरआन को अपने साथ घर ले आया। अब, नौ साल से अधिक समय के बाद, मुझे वह क़ुरआन मिला। मुझे नहीं पता कि मुझे इसे मस्जिद में वापस कर देना चाहिए, या घर पर इसमें अपना हिफ़्ज़ पूरा करना चाहिए। ज्ञात रहे कि मस्जिद में अब क़ुरआन याद करने के ह़ल्क़े (मंडलियाँ) नहीं हैं, और उसमें उस तरह की कोई प्रति भी नहीं बची है।
जब वह छोटा था, तब उसने मस्जिद से क़ुरआन की एक प्रति ली और वह अभी भी उसके घर में उसके साथ है, उसे क्या करना चाहिएॽ
प्रश्न: 356266
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
मस्जिदों में रखे हुए क़ुरआन को दूसरी मस्जिद में स्थानांतरित करना जायज़ नहीं है, सिवाय इसके कि मस्जिद को विध्वंस (शहीद) करने के कारण उनका उपयोग बाधित हो जाए, या वे प्रत्यक्ष रूप से उस (मस्जिद) की आवश्यकता से अधिक हों, तो उन्हें दूसरी मस्जिद में स्थानांतरित किया जा सकता है, लेकिन किसी के लिए उन्हें अपने घर ले जाना जायज़ नहीं है।
शैख इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह ने फरमाया : “यदि एक छोटी मस्जिद को उसमें मौजूद क़ुरआन की कुछ प्रतियों की आवश्यकता नहीं है, तो उस मस्जिद में जिन प्रतियों की आवश्यकता नहीं है उन्हें किसी दूसरी मस्जिद में जहाँ उनकी आवश्यकता है, स्थानांतरित करने में कोई आपत्ति की बात नहीं है। क्योंकि उसका उद्देश्य नमाज़ियों का क़ुरआन की इन प्रतियों से लाभ उठाना है। इसके लिए मस्जिद के इमाम की अनुमति लेना अधिक सावधानी की बात है; क्योंकि वह मस्जिद की ज़रूरत के बारे में अधिक जानने वाला है।” “मजमूउल-फतावा” (15/20) से उद्धरण समाप्त हुआ।
आपके शैख ने उन्हें दूसरी मस्जिद में स्थानांतरित करके गलती की है, सिवाय इसके कि क़ुरआन की वे प्रतियाँ तह़फ़ीज़ के ह़ल्क़े (क़ुरआन कंठस्थ करने की मंडली) के लिए वक़्फ़ रही हों, पहली मस्जिद के लिए वक़्फ़ न रही हों, तो वह उन्हें जहाँ भी तह़फ़ीज़ का ह़ल्क़ा हो वहाँ स्थानांतरित कर सकता है, या वे मस्जिद की आवश्यकता से अधिक रही हों।
जहाँ तक आपके क़ुरआन को अपने घर ले जाने की बात है, तो यह हराम है और अब आपके लिए अनिवार्य है कि उसे पहली मस्जिद में लौटा दें।
“स्थायी समिति” (16/19) के फतवे में आया है : “क्या मुसह़फ़ को घर में पढ़ने के लिए मस्जिदुल-हराम से निकालना जायज़ हैॽ
उत्तर : जो भी क़ुरआन और किताबें वक़्फ़ की जाती हैं ताकि किसी विशिष्ट स्थान पर उनसे लाभ उठाया जाए : उन्हें किसी और जगह ले जाना जायज़ नहीं है, चाहे वह हरम हो या उसके अलावा, सिवाय इसके कि उसकी जगह बेकार हो जाए, तो उसे उपयोग की दृष्टि से उसी के समान या उससे बेहतर जगह ले जाया जाएगा।” उद्धरण समाप्त हुआ।
शैख अब्दुल अज़ीज बिन अब्दुल्लाह बिन बाज़ .. शैख अब्दुल्लाह बिन ग़ुदैयान .. शैख अब्दुल्लाह बिन क़ऊद।
शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने कहा : “हमें पता होना चाहिए कि मस्जिदों में जो वक़्फ़-शुदा चीज़ें होती हैं किसी व्यक्ति के लिए उन्हें मस्जिद से बाहर निकालना जायज़ नहीं है, भले ही उनसे लाभ उठाने के लिए हो। चुनाँचे उसके लिए अपने घर में पढ़ने के लिए क़ुरआन की कोई प्रति निकालना जायज़ नहीं है, और न ही अपने घर में पढ़ने के लिए मस्जिद में वक़्फ की गई कोई किताब निकालना जायज़ है, तथा न ही उसके लिए अपने घर में उपयोग करने के लिए बिजली का या अन्य किसी चीज़ का कोई उपकरण बाहर निकालना जायज़ है। अतः जो चीज़ भी मस्जिद के लिए विशिष्ट कर दी गई है, उसे उसमें से बाहर निकालना जायज़ नहीं है।
कुछ लोगों का सोचना यह है कि चूँकि मस्जिदों में क़ुरआन की जो प्रतियाँ होती हैं, मस्जिद में प्रवेश करने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए सामान्य रूप से वक़्फ़ होती हैं, इसलिए किसी व्यक्ति के लिए अपने घर में अकेले उनसे लाभ उठाना जायज़ है। लेकिन यह एक गलत धारणा है। क्योंकि ऐसा हो सकता है कि आप उसे ले लें, फिर मस्जिद में ऐसे लोग आएँ जिन्हें उसकी आवश्यकता हो। इस तरह आप उन्हें इससे वंचित कर देंगे, यहाँ तक कि अगर क़ुरआन की प्रतियों की संख्या बहुत अधिक हो, क्योंकि मस्जिद में कभी बहुत से लोग प्रवेश कर सकते हैं।
बहरहाल; जो कुछ भी मस्जिद के लिए विशिष्ट है, किसी व्यक्ति के लिए उसे अपने घर में अलग करना जायज़ नहीं है। बल्कि यहाँ तक कि मस्जिद में भी उसके लिए उसे अलग करना जायज़ नहीं है, इस प्रकार कि वह क़ुरआन को लेकर उसमें से पढ़े। फिर उससे फारिग़ होने के बाद वह उसे किसी विशेष स्थान पर रख दे जिसे कोई न जान सके, ताकि जब वह मस्जिद में आए तो उससे पढ़े। क्योंकि सार्वजनिक चीजें सार्वजनिक होनी चाहिएं।
जहाँ तक प्रश्नकर्ता के प्रश्न का संबंध है, जिसने कहा : उसके साथी ने उसे क़ुरआन की एक प्रति दी जो उसने मस्जिद से ली थी; तो उसके लिए अनिवार्य यह है कि वह इस क़ुरआन को उस मस्जिद में लौटा दे, जिससे उसके साथी ने इसे लिया था।" “फतावा अश-शैख इब्न उसैमीन, “नूरुन अला अद्-दर्ब” (16/2) से उद्धरण समाप्त हुआ।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर