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3,0804/जिल्-हिज्जाह/1438 , 26/अगस्त/2017

तश्रीक़ के दिनों के रोज़े का हुक्म

Question: 42106

हर जुमेरात के दिन रोज़ा रखना मेरी आदत है, हुआ यह कि मैंने जुमेरात के दिन रोज़ा रखा जो संयोग से 12 ज़ुल-हिज्जा को पड़ा था। मैंने शुक्रवार के दिन सुना कि तश्रीक़ के दिनों में रोज़ा रखना जायज़ नहीं है, और जुमेरात का दिन तश्रीक़ का तीसरा दिन था। तो क्या उस दिन का रोज़ा रख लेने के कारण मेरे ऊपर कोई पाप है? और क्या वास्तव में तश्रीक के दिनों का रोज़ा रखना जायज़ नहीं है, या हम केवल ईद के पहले दिन रोज़ा नहीं रखेंगे?

Answer

Praise be to Allah, and peace and blessings be upon the Messenger of Allah and his family.

दोनों ईदों (ईदुल-फ़ित्र और ईदुल अज़्हा) के दिन रोज़ा रखना हराम है, इसकी दलील अबू सईद अल-खुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस है कि उन्हों ने कहाः

‘‘नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ईदुल फ़ित्र और क़ुर्बानी के दिन रोज़ा रखने से मना फरमाया है।’’ इसे बुखारी (हदीस संख्याः 1992) और मुस्लिम (हदीस संख्याः 827) ने रिवायत किया है।

विद्वानों की इस बात पर सर्व सहमति है कि दोनों ईदों का रोज़ा रखना हराम है।

इसी तरह तश्रीक के दिनों का रोज़ा रखना हराम है, और वे ईदुल-अज़्हा के बाद के तीन दिन (अर्थात ग्यारह, बारह और तेरह ज़ुल- हिज्ज़ा) हैं, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान हैः ‘‘तश्रीक के दिन खाने-पीने और अल्लाह तआला को याद करने के दिन हैं।’’

इसे मुस्लिम (हदीस संख्यः 1141) ने रिवायत किया है।

तथा अबू दाऊद (हदीस संख्या : 2418) ने उम्मे हानी के मौला (आजाद किए गए दास) अबू मुर्रह से रिवायत किया है कि वह अब्दुल्लाह बिन अम्र रज़ियल्लाहु अन्हुमा के साथ उनके पिता अम्र बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु के पास तश्रीफ लाए, तो उन्होंने उन दोनों के सामने खाना रखा और कहा कि : खाओ, तो उन्होंने कहा : मैं रोजे से हूँ। तो अम्र रजियल्लाहु अन्हु ने कहा : खाओ, क्योंकि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हमें इन दिनों का रोजा न रखने का आदेश देते थे, और हमें इन दिनों का रोजा रखने से मना करते थे।

इमाम मालिक कहते हैं कि : ये तश्रीक के दिन थे। अल्लामा अल्बानी ने सहीह अबू दाऊद में इस हदीस को सहीह करार दिया है।

लेकिन उस हाजी के लिए तश्रीक़ के दिनों का रोज़ा रखना जायज़ है जिस के पास क़ुर्बानी का जानवर न हो। आयशा और इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुम से वर्णित है कि उन्हों ने फरमायाः (तश्रीक़ के दिनों में रोज़ा रखने की अनुमति केवल उसी व्यक्ति के लिए है जो हदी (क़ुर्बानी) का जानवर न पाए।) इसे बुखारी (हदीस संख्यः 1998) ने रिवायत किया है।

शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह कहते हैं :

‘‘हज्जे क़िरान और हज्जे तमत्तो करने वाले के लिए, यदि वे दोनों हदी (क़ुर्बानी) का जानवर न पाएं, तो इन तीन दिनों का रोज़ा रखना जायज़ है, ताकि उन दोनों के रोज़ा रखने से पहले हज्ज का मौसम समाप्त न हो जाए। लेकिन इनके अलावा किसी और व्यक्ति के लिए इन दिनों का रोज़ा रखना जायज़ नहीं है, यहाँ तक कि यदि किसी व्यक्ति के ज़िम्मे लगातार दो महीने का रोज़ा रखना अनिवार्य है तब भी वह ईद के दिन और उसके बाद तीन दिन तक रोज़ा नहीं रखेगा, फिर (उसके बाद) वह अपने रोज़े जारी रखेगा।

फतावा रमज़ान (पृष्ठः 727)

इसी विषय में अधिक जानकारी के लिए प्रश्न संख्याः (21049) और (36950) देखें।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

Source

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