एक बिक्री केंद्र में मेरे काम करने के कारण, रमज़ान के महीने में दिन के दौरान मेरा लड़कियों से सामना होता है और मैं उनसे बिना वासना के बात करता हूँ। लेकिन मुझे अपने गुप्तांग (लिंग) से कुछ निकलने का एहसास होता है, मुझे नहीं पता कि यह क्या हैॽ क्या यह वीर्य है या मज़ी (स्खलन पूर्व निकलने वाला द्रव)? क्या इससे मेरा रोज़ा अमान्य हो गयाॽ
क्या मज़ी रोजा अमान्य कर देता है
प्रश्न: 49752
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
यह द्रव पदार्थ या तो मनी (वीर्य) है या मज़ी (चुंबन या फोरप्ले के कारण मूत्रमार्ग से निकलने वाला पतला पानी) है।
“वीर्य और मज़ी के बीच अंतर : यह है कि पुरुष का वीर्य गाढ़ा, सफेद पानी होता है, और महिला का वीर्य पतला, पीला पानी होता है। जहाँ तक मज़ी का सवाल है, तो वह पतला, सफेद, चिपचिपा पानी होता है जो फोरप्ले के दौरान, या संभोग के बारे में सोचते समय, या इसकी इच्छा करते समय, या देखते समय आदि निकलता है। यह पुरुषों और महिलाओं दोनों द्वारा अनुभव किया जाता है।” “फतावा अल-लजनह अद-दायमह” (5/418)
बहुत संभव है कि जो आपसे निकला है, वह मज़ी है, वीर्य नहीं। क्योंकि वीर्य उछल कर निकलता है और आदमी को इसका एहसास होता है।
वीर्य स्खलित करने का कारण बनना, रोज़ा को अमान्य करने वाली चीजों में से एक है, जैसे कि अगर उसने संभोग किया, या चुंबन किया, या आलिंगन किया, या बार-बार महिलाओं को देखा और परिणामस्वरूप वीर्य स्खलित किया, तो उसका रोज़ा अमान्य हो जाएगा। प्रश्न (2571) देखें।
क्या मज़ी रोज़ा को अमान्य कर देता हैॽ
जहाँ तक मज़ी का संबंध है, तो विद्वानों में इस बात पर मतभेद है कि अगर वह उसके उत्सर्जन का कारण बनता है, तो क्या यह रोज़े को ख़राब (अमान्य) कर देगा। हंबली मत का दृष्टिकोण यह है कि इससे रोज़ा टूट जाएगा, अगर उसके उत्सर्जन का कारण सीधे शारीरिक संपर्क, जैसे कि हाथ से छूना, या चुंबन करना आदि है।
लेकिन यदि उसके उत्सर्जन का कारण बार-बार देखना हो, तो इससे रोज़ा नहीं टूटेगा।
अबू हनीफा और शाफ़ेई का विचार है कि मज़ी के उत्सर्जन से बिल्कुल भी रोज़ा नहीं टूटेगा, चाहे वह सीधे शारीरिक संपर्क के कारण हो या उसके अलावा। और जो चीज़ रोज़े को अमान्य करती है वह मनी (वीर्य) का उत्सर्जन है, न कि मज़ी का उत्सर्जन।” देखें: “अल-मुग़्नी” (4/363)
शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने इस मुद्दे पर हंबली मत का उल्लेख करने के बाद “अश-शर्ह अल-मुम्ते'” (6/236) में कहा :
''इसका कोई सही प्रमाण नहीं है, क्योंकि मज़ी का दर्जा, मनी से कमतर है, चाहे इच्छा (वासना) के संबंध में हो, या इसे उत्सर्जित करने के बाद शरीर के थकान से ग्रस्त होने के संबंध में। इसलिए मज़ी को मनी के साथ नहीं जोड़ा जा सकता है।
सही दृष्टिकोण यह है कि यदि कोई व्यक्ति सीधे शारीरिक संपर्क करता है और मज़ी उत्सर्जित करता है, या हस्तमैथुन करता है और मज़ी उत्सर्जित करता है, तो यह उसके रोज़े को अमान्य नहीं करेगा, बल्कि उसका रोज़ा सही है। इसी दृष्टिकोण को शैखुल-इस्लाम इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह ने अपनाया है। इसका प्रमाण यह है कि इस बात का कोई सबूत नहीं है (अर्थात इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि मज़ी का उत्सर्जन रोज़ा को अमान्य कर देता है), क्योंकि यह रोज़ा एक इबादत है जिसे व्यक्ति ने शरीयत के अनुसार शुरू किया है। अतः इस इबादत को हम बिना प्रमाण के अमान्य नहीं कर सकते।''
"उसने हस्तमैथुन किया और मज़ी उत्सर्जित किया।” का अर्थ यह है कि उसने हस्तमैथुन के द्वारा वीर्य स्खलित करने की कोशिश की, लेकिन वीर्य स्खलित नहीं हुआ, बल्कि मज़ी स्खलित हुआ।
शैख इब्ने बाज़ (15/267) से पूछा गया : यदि कोई व्यक्ति रोज़े की अवस्था में चुंबन करता है या कुछ अश्लील फिल्में देखता है और उससे मज़ी स्खलित हो जाता है, तो क्या वह रोज़े की क़ज़ा करेगाॽ
उन्होंने उत्तर दिया :
"विद्वानों की दो रायों में से अधिक सही के अनुसार, मज़ी का उत्सर्जन रोज़े को अमान्य नहीं करता है, चाहे वह पत्नी को चूमने, या कुछ फिल्में देखने, या इनके अलावा वासना को भड़काने वाली अन्य चीज़ों के कारण हो। लेकिन किसी मुसलमान के लिए अश्लील फिल्में देखना, या ऐसे गाने और संगीत (मनोरंजन उपकरण) सुनना जायज़ नहीं है जिन्हें अल्लाह ने हराम किए हैं। जहाँ तक वासना के कारण वीर्य के उत्सर्जन की बात है, तो यह रोज़े को अमान्य कर देता है, चाहे यह आलिंगन (स्पर्श), या चुंबन, या बार-बार देखने या इनके अलावा अन्य कारणों से हुआ हो जो वासना को उत्तेजित कर देते हैं, जैसे हस्तमैथुन आदि। जहाँ तक स्वपनदोष और सोच का सवाल है, तो इनसे रोज़ा अमान्य नहीं होता, भले ही उनकी वजह से वीर्य निकल जाए।” उद्धरण समाप्त हुआ।
स्थायी समिति (10/273) से पूछा गया : रमज़ान में एक दिन मैं अपनी पत्नी के पास लगभग आधे घंटे तक बैठा था जबकि हम रोज़े की अवस्था में थे और हम आपस में हँसी-मज़ाक़ की बातें कर रहे थे। जब मैं उससे दूर चला गया, तो मैंने अपनी पैंट पर एक गीला धब्बा देखा जो मेरे प्राइवेट पार्ट से निकला था। और ऐसा दोबारा हुआ। कृपया मुझे अवगत कराएँ कि क्या मेरे ऊपर कफ़्फ़ारा (प्रायश्चित्त) अनिवार्य हैॽ
तो उसने जवाब दिया :
"यदि वास्तविकता वैसी ही है जैसी आपने बताई है, तो मूल सिद्धांत के साथ बने रहने के नियम का एतबार करते हुए, आपको उस दिन की क़ज़ा करने या कोई प्रायश्चित करने की ज़रूरत नहीं है, जब तक कि यह साबित न हो जाए कि वह गीलापन मनी (वीर्य) है। ऐसी स्थिति में आपके लिए ग़ुस्ल करना और उस दिन की क़ज़ा करना ज़रूरी है, लेकिन कफ़्फ़ारा अनिवार्य नहीं है।" उद्धरण समाप्त हुआ।
निष्कर्ष यह है कि आपको कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं है और आपका रोज़ा सही है, जब तक कि आप निश्चित न हो जाएँ कि जो कुछ आपसे निकला वह मनी (वीर्य) है। यदि वह मनी है, तो आपको उस दिन की क़ज़ा करनी होगी, लेकिन आप पर कफ़्फ़ारा अनिवार्य नहीं है।
आपको चाहिए कि महिलाओं से अनावश्यक बातचीत करने से बचें, यदि आपको उनसे बात करने की आवश्यकता पड़ जाए, तो आपको सर्वशक्तिमान अल्लाह के निम्नलिखित कथन का पालन करते हुए अपनी निगाहें नीची कर लेनी चाहिए :
قُلْ لِلْمُؤْمِنِينَ يَغُضُّوا مِنْ أَبْصَارِهِمْ وَيَحْفَظُوا فُرُوجَهُمْ ذَلِكَ أَزْكَى لَهُمْ إِنَّ اللَّهَ خَبِيرٌ بِمَا يَصْنَعُونَ
النور/30
“(ऐ नबी!) आप ईमान वाले पुरुषों से कह दें कि अपनी निगाहें नीची रखें और अपने गुप्तांगों की रक्षा करें। यह उनके लिए अधिक पवित्र है। निःसंदेह अल्लाह उससे पूरी तरह अवगत है, जो वे करते हैं।” [सूरतुन-नूर : 30]
तथा मुस्लिम (हदीस संख्या : 2159) ने जरीर बिन अब्दुल्लाह से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से अचानक नज़र पड़ने के बारे में पूछा, तो आपने मुझे अपनी नज़र फेर लेने का आदेश दिया।
नववी ने कहा :
“अचानक नज़र पड़ने का मतलब यह है कि उसकी नज़र बिना इरादे के किसी पराई (गैर-महरम) महिला पर पड़ जाए। तो पहले-पहल इसमें उसपर कोई पाप नहीं है। परंतु उसपर अनिवार्य है कि वह तुरंत अपनी नज़र दूसरी तरफ़ फेर ले। अगर उसने तुरंत अपनी नज़र हटा ली, तो उसपर कोई गुनाह नहीं है। लेकिन अगर वह देखना जारी रखता है, तो इस हदीस के आधार पर वह पापी है। क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उसे अपनी नज़र फेरने का आदेश दिया, साथ ही अल्लाह तआला का फरमान है : قُلْ لِلْمُؤْمِنِينَ يَغُضُّوا مِنْ أَبْصَارِهِمْ “आप ईमानवाले पुरुषों से कह दें कि अपनी निगाहें नीची रखें” उद्धरण समाप्त हुआ।
यदि किसी ऐसी महिला का होना संभव है, जो महिलाओं को सामान बेचने और उनसे बात करने की ज़िम्मेदारी संभाल सके, तो यह बेहतर और सुरक्षित है।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर
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