0 / 0

शव्वाल के छः रोज़ों की फज़ीलत

प्रश्न: 7859

शव्वाल के छः रोज़ों की क्या फज़ीलत है, और क्या यह अनिवार्य है ?

उत्तर का पाठ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

रमज़ान के फर्ज़ (अनिवार्य) रोज़े के बाद शव्वाल के छः दिनों का रोज़ा रखना एक स्वैच्छिक सुन्नत है अनिवार्य नहीं है, और मुसलमान के लिए शव्वाल के छः रोज़े रखना धर्म संगत है और इसके अंदर बहुत फज़ीलत और बड़ा पुन्य है। क्योंकि जो व्यक्ति इसका रोज़ा रखेगा उसको पूरे एक वर्ष का रोज़ा रखने का अज्र व सवाब मिलेगा, जैसाकि यह बात मुसतफा सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रमाणित है, जैसाकि अबू अय्यूब रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस में है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जिस व्यक्ति ने रमज़ान के रोज़े रखे और उसके बाद ही शव्वाल का छः रोज़े रखे तो यह ज़िंदगी (ज़माने) भर रोज़ा रखने के समान है।” इसे मुस्लिम, अबू दाऊद, तिर्मिज़ी, नसाई और इब्ने माजा ने रिवायत किया है।

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इसकी व्याख्या अपने इस फरमान के द्वारा की है : “जिसने ईदुल फित्र के बाद छः दिनों का रोज़ा रखा तो वह पूरे साल रोज़ा रखने की तरह है : “जो व्यक्ति नेकी करेगा तो उसके लिए उसके समान दस गुना (सवाब) है।” तथा एक रिवायत में है कि : “अल्लाह तआला ने नेकी को उसके दस गुना के बराबर कर दिया है, तो एक महीना दस महीने के बराबर है, और छः दिनों का रोज़ा पूर वर्ष के बराबर है।”(नसाई, इब्ने माजा), और वह सहीह तर्गीब व तर्हीब (1/421) में है, तथा इब्ने खुज़ैमा ने उसे इन शब्दों के साथ रिवायत किया है : “रमज़ान के महीने का रोज़ा उसके दस गुना के बराबर है और छः दिनों का रोज़ा दो महीने के बराबर है, तो यही साल भर का रोज़ा है।”

तथा शाफईया और हनाबिला के फुक़हा ने इस बात को स्पष्ट रूप से वर्णन किया है कि : रमज़ान के बाद शव्वाल के छः दिनों का रोज़ा रखना एक साल फर्ज़ रोज़ा रखने के बराबर है, अन्यथा अज्र व सवाब का कई गुना बढ़ा दिया जाना तो सामान्य रूप से नफली रोज़ो में भी प्रमाणित है क्योंकि नेकी को बढ़ाकर उसके दस गुना बराबर कर दिया जाता है।

फिर यह बात भी है कि शव्वाल के छः दिनों का रोज़ा रखने के महत्वपूर्ण लाभों में से एक उस कमी की आपूर्ति है जो रमज़ान में फर्ज़ रोज़े के अंदर पैदा हो गई है, क्योंकि रोज़ादार इस बात से खाली नहीं होता है कि उस से कोई कोताही या ऐसा पाप न हुआ हो जो उसके रोज़े को निषेधात्मक रूप से प्रभावित न करता हो, तथा क़ियामत के दिन नवाफिल से लेकर फराइज़ की कमी को पूरा किया जायेगा, जैसाकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “क़ियामत के दिन लोगों का उनके आमाल में से सबसे पहले नमाज़ का हिसाब लिया जायेगा, आप ने फरमाया : हमारा सर्वशक्तिमान पालनहार अपने फरिश्तों से फरमायेगा जबकि वह सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है : मेरे बंदे की नमाज़ को देखो क्या उसने उसे पूरा किया है या उसमें कमी है, यदि वह पूरी है तो पूरी लिखी जायेगी, और यदि उसमें कुछ कमी रह गई है तो अल्लाह तआला फरमायेगा : देखो, क्या मरे बंदे के पास कुछ नफ्ल है, यदि उसके पास नफ्ल है, तो अल्लाह तआला फरमायेगाः मेरे बंदे के फरीज़े को उसी नफ्ल से पूरा कर दो।फिर अन्य आमाल के साथ भी इसी तरह किया जायेगा।” इसे अबू दाऊद ने रिवायत किया है।

स्रोत

शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद

at email

डाक सेवा की सदस्यता लें

साइट की नवीन समाचार और आवधिक अपडेट प्राप्त करने के लिए मेलिंग सूची में शामिल हों

phone

इस्लाम प्रश्न और उत्तर एप्लिकेशन

सामग्री का तेज एवं इंटरनेट के बिना ब्राउज़ करने की क्षमता

download iosdownload android