सर्व प्रथमः
रोज़ा इफ़्तार करने के समय उल्लिखित शब्दों के साथ दुआ करना एक ज़ईफ़ (कमज़ोर) हदीस में वर्णित है जिसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 2358) ने मुआज़ बिन जुहरा से रिवायत किया है कि उन्हें यह बात पहुँची कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब रोज़ा इफ्तार करते थे तो यह दुआ पढ़ते थेः " اللَّهُمَّ لَكَ صُمْتُ وَعَلَى رِزْقِكَ أَفْطَرْتُ " “अल्लाहुम्मा लका सुम्तो व अला रिज़्क़िका अफ़्तर्तो” (ऐ अल्लाह, मैंने तेरे लिए रोज़ा रखा और तेरी प्रदान की हुई रोज़ी पर रोज़ा खोला।)
लेकिन इसके स्थान पर, हमारे लिए निम्नलिखित दुआ पर्याप्त है, जिसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 2357) ने इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहाः ''अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब रोज़ा खोलते थे तो यह दुआ पढ़ते थे:
ذَهَبَ الظَّمَأُ وَابتَلَّتِ العُروقُ ، وَثَبَتَ الْأجْرُ إِنْ شَاءَ اللهُ تَعَالى
“ज़हा-बज़्ज़मओ वब्बतल्लतिल उरूक़ो व सब-तल अज्रो इन शा अल्लाहो तआला’’ (प्यास चली गई, रगें तर होगईं और यदि अल्लाह तआला ने चाहा तो पुण्य निश्चित हो गया।)
इस हदीस को अल्बानी ने सहीह अबू दाऊद में हसन कहा है।
दूसरा :
रोज़ेदार के लिए उसके रोज़े के दौरान और रोज़ा खोलने के समय दुआ करना मुस्तहब है। क्योंकि अहमद ने (हदीस संख्या : 8030) अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहाः हमने कहा कि ऐ अल्लाह के पैगंबर, जब हम आपको देखते हैं तो हमारे दिल नरम हो जाते हैं और हम परलोक वालों में से होते हैं, लेकिन जब हम आपके पास से चले जाते हैं तो हमें दुनिया अच्छी लगती है और हम महिलाओं और बच्चों में लिप्त हे जाते हैं। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "यदि तुम लोग हमेशा उसी अवस्था में रहने लगो जिस अवस्था में तुम मेरे पास होते हो, तो स्वर्गदूत (फ़रिश्ते) तुम्हारे साथ अपने हाथों से मुसाफ़हा करें (हाथ मिलाएं) और वे तुम्हारे घरों में तुमसे मुलाक़ात करें। यदि तुम पाप न करो, तो अल्लाह ऐसे लोगों को लाएगा जो पाप करेंगे ताकि वह उन्हें क्षमा कर सके। उन्होंने कहा: हमने कहा: हे अल्लाह के पैगंबर, हमें स्वर्ग के बारे में बताएं, उसका निर्माण कैसा हैॽ आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “एक ईंट सोने की है और एक ईंट चांदी की, उसका गारा सुगंधित कस्तूरी (का) है, उसके कंकड़ मोती और याक़ूत (रूबी, नीलमणि) हैं और उसकी मिट्टी केसर है। जो भी इसमें प्रवेश करेगा वह आनंदित होगा और कभी भी निराश नहीं होगा। वह हमेशा के लिए वहां रहेगा, उसकी कभी मृत्यु नहीं होगी। उसके कपड़े कभी पुराने नहीं होंगे और उसकी जवानी कभी समाप्त नहीं होगी। तीन लोग ऐसे हैं जिनकी दुआ को अस्वीकार नहीं किया जाता है: न्यायशील शासक, रोज़ा रखनेवाला व्यक्ति यहाँ तक कि वह रोज़ा इफ़्तार कर ले, तथा उत्पीड़ित की दुआ, वह बादलों पर सवार होकर जाती है और उसके लिए आकाश के द्वार खोले जाते हैं, और सर्वशक्तिमान पालनहार फरमाता है : 'मेरी महिमा की सौगंध, मैं तेरी अवश्य मदद करूँगा चाहे कुछ समय बाद ही करूँ।”
इस हदीस को शुऐब अल-अर्नऊत ने अल-मुस्नद की तह़्क़ीक़ में सहीह कहा है।
तथा तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 2525) ने इन शब्दों के साथ रिवायत किया हैः “. . . और रोज़ा रखने वाला व्यक्ति जब वह अपना रोज़ा खोलता है . . .।” इसे अल-अल्बानी ने सहीह अल-तिर्मिज़ी में सहीह कहा है।
अतः आप अल्लाह से स्वर्ग के लिए प्रश्न कर सकते हैं और आग (नरक) से उसका शरण ले सकते हैं, आप क्षमा के लिए प्रार्थना कर सकते हैं, तथा आप इनके अलावा अन्य धर्मसंगत (वैध) दुआओं के साथ भी प्रार्थना कर सकते हैं। लेकिन जहाँ तक इस निर्धारित सूत्रः “أشهد أن لا أله إلا الله أستغفر الله أسألك الجنة وأعوذ بك من النار " “अश्हदो अन ला इलाहा इल्लल्लाह, अस्तग़्फ़िरुल्लाह, अस्-अलुकल-जन्नता व अऊज़ो बिका मिनन्नार” (मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के अलावा कोई वास्तविक पूज्य नहीं, मैं अल्लाह की क्षमा चाहता हूँ, मैं तुझसे जन्नत का प्रश्न करता हूँ और नरक से तेरे शरण में आता हूँ।)
के साथ दुआ करने का प्रश्न है तो हमें इसका कोई स्रोत नहीं मिला।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।