नमाज़ के दौरान क़ुरआन पढ़ते समय अज़ाब के वर्णन पर आधारित आयतों के पास ठहरने वाले व्यक्ति का क्या हुक्म हैॽ
अज़ाब के वर्णन पर आधारित आयत पढ़ते समय अल्लाह की शरण लेने की वैधता
प्रश्न: 96028
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
अधिकांश (जमहूर) विद्वानों के कथन के अनुसार, नमाज़ी के लिए यह सुन्नत है कि यदि वह किसी अज़ाब (दंड) की आयत से गुज़रे, तो अल्लाह की शरण ले और जब दया की आयत से गुज़रे, तो अल्लाह से दया का प्रश्न करे। क्योंकि मुस्लिम (हदीस संख्या : 772) ने हुज़ैफा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : “मैंने एक रात नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ नमाज़ पढ़ी। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सूरतुल-बक़रा पढ़ना शुरू किया। मैंने अपने दिल में कहा (सोचा) : आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सौ आयतों पर पहुँचकर रुकूअ करेंगे। लेकिन आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम आगे बढ़ गए। फिर मैंने सोचा कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इसे एक रकअत में पढ़ेंगे। लेकिन आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम आगे बढ़ गए। फिर मैंने सोचा कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पूरी सूरत पढ़कर रुकूअ करेंगे। लेकिन फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सूरतुन-निसा पढ़ना शुरू कर दिया और उसे पढ़कर, फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सूरत आल-इमरान का पाठ करना शुरू कर दिया। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ठहर-ठहर कर पढ़ते थे। जब ऐसी आयत पर पहुँचते जिसमें अल्लाह की तसबीह (महिमा करने की बात) होती थी, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तसबीह (अल्लाह की महिमा का गान) करते। तथा जब आप किसी ऐसी आयत पर पहुँचते, जिसमें माँगने की बात होती थी, तो आप अल्लाह से माँगते थे। और जब ऐसी आयत पर गुज़र होता जिसमें शरण लेने की बात कही गई होती थी, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अल्लाह की शरण माँगते थे।”
इसे तिर्मिज़ी और नसाई ने इन शब्दों के साथ उल्लेख किया है : “जब आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ऐसी आयत पर गुज़रते, जिसमें अज़ाब (यातना) की बात की गई होती थी, तो रुक जाते और (उस यातना से) अल्लाह की शरण मांगते।”
तथा अबू दाऊद (हदीस संख्या : 873) और नसाई ने औफ़ बिन मालिक अल-अशजई से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : “मैं एक रात अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ (क़ियाम की नमाज़ पढ़ने के लिए) खड़ा हुआ। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम खड़े हुए और आपने सूरतुल-बक़रा का पाठ किया। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम किसी दया वाली आयत से नहीं गुज़रते, परंतु वहाँ ठहरते और (दया का) सवाल करते। और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम किसी ऐसी आयत से नहीं गुज़रते, जिसमें अज़ाब (यातना) का उल्लेख होता, परंतु वहाँ ठहरकर (उस यातना से) अल्लाह की शरण लेते। वह कहते हैं : फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने क़ियाम के बराबर रुकूअ किया। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने रुकूअ में पढ़ा : سُبْحَانَ ذِي الْجَبَرُوتِ وَالْمَلَكُوتِ وَالْكِبْرِيَاءِ وَالْعَظَمَةِ “सुब्ह़ाना ज़िल-जबरूति वल-मलकूति वल-किबरियाए वल-अज़मति” (पाक है परम शक्ति, राज्य, गौरव और महानता वाला (अल्लाह)। फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने क़ियाम के बराबर लंबा सजदा किया। फिर अपने सजदा में वही दुआ पढ़ी, जो रुकूअ में पढ़ी थी। फिर उसके बाद आप (दूसरी रकअत में) खड़े हुए और सूरत आल-इमरान का पाठ किया, फिर (आगे) एक-एक सूरत पढ़ते गए।”
यह इंगित करता है कि अज़ाब के उल्लेख पर आधारित आयत के पास ठहरना और उस यातना से अल्लाह की शरण लेना, धर्मसंगत है।
अन-नववी रहिमहुल्लाह ने “अल-मजमू” (3/562) में कहा :
शाफेई और हमारे साथियों ने कहा : क़ुरआन पढ़ने वाले के लिए, चाहे नमाज़ में हो या उसके बाहर, यह सुन्नत है कि जब वह किसी रहमत (दया) की आयत से गुज़रे, तो अल्लाह तआला से दया का प्रश्न करे, या किसी अज़ाब की आयत से गुज़रे, तो उस अज़ाब से अल्लाह की शरण माँगे, या किसी ऐसी आयत से गुज़रे जिसमें अल्लाह की तसबीह़ (महिमा) करने का उल्लेख हो, तो उसकी तसबीह़ (महिमा) करे; या वह किसी ऐसी आयत से गुज़रे जिसमें कोई उदाहरण प्रस्तुत किया गया हो, तो उस पर चिंतन करे। हमारे साथियों ने कहा : यह इमाम, मुक़तदी और अकेले नमाज़ पढ़ने वाले के लिए मुस्तहब है … तथा यह सब, हर क़ुरआन पढ़ने वाले के लिए मुस्तहब है, चाहे वह नमाज़ में पढ़ रहा हो या उसके अलावा, चाहे वह अनिवार्य (फ़र्ज़) नमाज़ हो या नफ़्ल, और चाहे वह मुक़तदी हो या इमाम या अकेले नमाज़ पढ़ रहा हो; क्योंकि यह एक दुआ है। इसलिए आमीन कहने की तरह, वे सभी इस मामले में समान हैं। इस मुद्दे का प्रमाण (सबूत) हुज़ैफ़ा रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस है . . . यह हमारे मत का विवरण है। अबू हनीफा रहिमहुल्लाह ने कहा : नमाज़ के दौरान दया की आयत से गुज़रने पर दया माँगना और (अज़ाब की आयत आने पर) अल्लाह की शरण लेना नापसंदीदा है। हमारे ही मत (विचार) के अनुसार, सलफ़ और उनके बाद के अधिकांश विद्वानों (जमहूर) का दृष्टिकोण है।” उद्धरण समाप्त हुआ।
तथा “कश्शाफ़ अल-क़िना” (1/384) में है : “उसके लिए रहमत या अज़ाब की आयत के पास, फ़र्ज़ और नफ़्ल (हर) नमाज़ में (दया का) सवाल करना और (अज़ाब से) अल्लाह की शरण माँगना अनुमेय है।” उद्धरण समाप्त हुआ।
शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह से पूछा गया : “उस आदमी का क्या हुक्म है, जिसने इमाम के जहरी नमाज़ में क़िराअत करने के दौरान “आमीन”, “अऊज़ो बिल्लाहि मिनन्-नार” (मैं नरक की आग से अल्लाह की शरण चाहता हूँ), या “सुब्ह़ान अल्लाह” (अल्लाह पवित्र है) कहाॽ यह उस समय जब मुक़तदी (इमाम के पीछे नमाज़ पढ़ने वाला) उन आयतों को सुनता है जो अल्लाह की शरण लेने या उसका महिमामंडन करने या आमीन कहने की अपेक्षा करती हैंॽ
तो उन्होंने उत्तर दिया : जहाँ तक उन आयतों का संबंध है, जो अल्लाह का महिमामंडन करने, या उसकी शरण लेने, या उससे सवाल करने की अपेक्षा करती हैं, तो यदि पाठक रात की नमाज़ के दौरान ऐसी आयतों से गुज़रता है, तो उसके लिए वह करना सुन्नत है जो उचित है। अतः यदि वह किसी ऐसी आयत से गुज़रता है जिसमें धमकी (सज़ा का वादा) है, तो वह उससे अल्लाह की शरण लेगा, और यदि वह दया की आयत से गुज़रता है, तो वह दया का सवाल करेगा।
लेकिन अगर वह इमाम (की क़िराअत) को सुन रहा है, तो बेहतर है कि वह ध्यान से सुनने के अलावा किसी और चीज़ में व्यस्त न हो। हाँ, यदि ऐसा होता है कि इमाम आयत के अंत में रुक गया और वह एक दया की आयत है, तो मुक़तदी ने अल्लाह से दया का सवाल कर लिया, या वह एक धमकी (चेतावनी) की आयत है तो उसने उससे अल्लाह की शरण माँग ली, या अल्लाह का महिमामंडन करने की आयत है, तो उसने अल्लाह का महिमामंडन किया, तो इसमें कोई आपत्ति की बात नहीं है। लेकिन अगर वह ऐसा उस समय करता है जब इमाम अपना पढ़ना जारी रखे होता है, तो मुझे डर है कि यह उसे इमाम के पाठ को सुनने से विचलित कर देगा। और पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जब अपने साथियों को जहरी नमाज़ में अपने पीछे पढ़ते हुए सुना तो फरमाया : "तुम उम्मुल-क़ुरआन (सूरतुल-फातिहा) को छोड़कर ऐसा मत करो। क्योंकि जिसने इसे नहीं पढ़ा, उसकी कोई नमाज़ नहीं।"
‘’फतावा नूरुन अला अद्-दर्ब” से उद्धरण समाप्त हुआ।
लेकिन कुछ विद्वानों का कहना है कि यह केवल नफ़्ल नमाज़ों में मुसतहब (अनुशंसित) है, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से ऐसा ही वर्णित है। लेकिन यदि वह फ़र्ज़ नमाज़ में ऐसा करता है, तो जायज़ है, भले ही वह सुन्नत नहीं है।
तथा कुछ विद्वानों ने कहा : वह फ़र्ज़ (अनिवार्य) और नफ़्ल दोनों नमाज़ों में ऐसा कर सकता है।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर