“ऐ अल्लाह! मैं रोज़े से हूँ” कहना
वह बीमार है और उसे निरंतर दवा की ज़रूरत है
रमज़ान में दिन के दौरान संभोग करने वाले का कफ़्फ़ारा और खाना खिलाने की मात्रा
उसने रोज़ा तोड़ दिया और शर्म के कारण (क़ज़ा का) रोज़ा नहीं रखा
पूरा फ़िदया एक ही ग़रीब व्यक्ति को देने में कोई आपत्ति नहीं है
क्या रोज़े के फ़िदया में गरीब लोगों को सूप (शोरबा) देना पर्याप्त हैॽ
कफ़्फ़ारा निकालने का तरीक़ा
उसने अपने ऊपर अनिवार्य रोज़ों की अभी तक क़ज़ा नहीं की
ऐसे व्यक्ति को क्या करना चाहिए जिसने रोज़ा छोड़ दिया
क़ज़ा के रोज़े में मूल रोज़े की तरह रात ही के समय से नीयत करना आवश्यक है।
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