0 / 0

नमाज़ में दुआ के स्थान

प्रश्न: 175070

नमाज़ में दुआ के स्थान क्या-क्या हैंॽ

उत्तर का पाठ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

नमाज़ में दुआ के स्थान दो प्रकार के हैं :

पहला प्रकार :

वे स्थान जिनके बारे में ऐसे प्रमाण आए हैं जो उन्हें इस बात से विशिष्ट करते हैं कि उनमें दुआ करना मुस्तहब है और उसपर प्रोत्साहित करते हैं, इनमें नमाज़ी के लिए एच्छिक (मुस्तहब) है कि वह जितनी चाहे दुआ को लंबी करे, चुनाँचे वह अल्लाह सर्वशक्तिमान से अपनी पूर्ण जरूरतों का और दुनिया और आख़िरत की भलाइयों में सो जो भी पसंद हो उसका प्रश्न करे।

पहला स्थान :

सज्दे में, इसका प्रमाण नबी सल्लल्लाहु अलैहि सल्लम का यह फरमान है : ”बंदा सज्दे की हालत में अपने पालनहार से सबसे निकट होता है। अतः (इस अवस्था में) अधिक से अधिक दुआ करो।” इसे मुस्लिम (हदीस संख्याः 482) ने रिवायत किया है।

दूसरा स्थान :

अंतिम तशह्हुद के बाद और सलाम फेरने से पहले, इसका प्रमाण इब्ने मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उन्हें तशह्हुद सिखाया, फिर आप ने उसके अंत में फरमायाः ”फिर वह जो मांगना चाहे उसका चुनाव कर ले।” इसे बुखारी (हदीस संख्याः 5876) और मुस्लिम (हदीस संख्याः 402) ने रिवायत किया है।

तीसरा स्थान :

वित्र के क़ुनूत में, इसका प्रमाण वह हदीस है जिसे अबू दाऊद (हदीस संख्याः 1425) ने हसन बिन अली रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहाः अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुझे कुछ शब्द सिखाए जिन्हें मैं वित्र के क़ुनूत में पढ़ता हूँ :

 اللَّهُمَّ اهْدِنِي فِيمَنْ هَدَيْتَ ، وَعَافِنِي فِيمَنْ عَافَيْتَ ، وَتَوَلَّنِي فِيمَنْ تَوَلَّيْتَ ، وَبَارِكْ لِي فِيمَا أَعْطَيْتَ ، وَقِنِي شَرَّ مَا قَضَيْتَ ، إِنَّكَ تَقْضِي وَلَا يُقْضَى عَلَيْكَ ، وَإِنَّهُ لَا يَذِلُّ مَنْ وَالَيْتَ ، وَلَا يَعِزُّ مَنْ عَادَيْتَ ، تَبَارَكْتَ رَبَّنَا وَتَعَالَيْتَ  

“अल्लाहुम्मह-दिनी फी मन् हदैत, व आफिनी फी मन आफैत, व त-वल्लनी फी मन तवल्लैत, व बारिक ली फी मा आ’तैत, व क़िनी शर्रा मा क़ज़ैत, इन्नका तक़्ज़ी वला युक़्ज़ा अलैक, व-इन्नहू ला यज़िल्लो मन वालैत, वला य-इज़्ज़ो मन आदैत, तबारक्ता रब्बना व-तआलैत”

इसे अल्बानी ने ”सहीह अबू दाऊद” में (हदीस संख्याः 1281 के तहत) सही कहा है।

दूसरा प्रकार :

ऐसे स्थान जो पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के नमाज़ की विधि में वर्णित हुए हैं कि आप ने उनमें दुआ की है, लेकिन आप ने लंबी दुआ नहीं की, न उसे दुआ के लिए विशिष्ट किया और न तो सामान्य ज़रूरतों का प्रश्न करने पर प्रोत्साहित किया है, बल्कि कुछ गिने-चुने शब्दों और वाक्यों के साथ दुआ की है। अतः इन स्थानों में (उन्हीं) प्रतिबंधित अज़कार के साथ दुआ करना, सामान्य दुआ से अधिक उपयुक्त है : 

पहला स्थान :

तक्बीरतुल एहराम के बाद और सूरतुल-फातिहा शुरू करने से पहले, इस्तिफ्ताह की दुआ।

दूसरा स्थान :

रुकूअ में, क्योंकि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम यह दुआ किया करते थे :

 سبحانك اللهمّ ربنا وبحمدك اللهمّ اغفر لي 

सुब्हानकल्लाहुम्मा रब्बना व बिहम्दिका, अल्लाहुम्मग़-फिर्ली।

‘‘ऐ हमारे पालनहार अल्लाह! तो पाक-पवित्र है, हम तेरी प्रशंसा करते हैं, ऐ अल्लाह मुझे क्षमा कर दे।’’

इसे बुखारी (हदीस संख्याः 761) और मुस्लिम (हदीस संख्याः 484)  ने आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा की हदीस से वर्णन किया है।

इमाम बुखारी रहिमहुल्लाह ने अपनी सहीह में इस हदीस पर यह शीर्षक लगाया हैः

(रुकूअ में दुआ करने का अध्याय)

तीसरा स्थान :

रुकूअ से उठने के बाद, इसकी दलील अब्दुल्लाह बिन अबी औफ़ा की नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से वर्णित हदीस है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम कहा करते थे :

  اللهُمَّ لَكَ الْحَمْدُ مِلْءُ السَّمَاءِ ، وَمِلْءُ الْأَرْضِ ، وَمِلْءُ مَا شِئْتَ مِنْ شَيْءٍ بَعْدُ ، اللهُمَّ طَهِّرْنِي بِالثَّلْجِ وَالْبَرَدِ وَالْمَاءِ الْبَارِدِ ، اللهُمَّ طَهِّرْنِي مِنَ الذُّنُوبِ وَالْخَطَايَا كَمَا يُنَقَّى الثَّوْبُ الْأَبْيَضُ مِنَ الْوَسَخِ  

(अल्लाहुम्मा लकल हम्द, मिल्उस्समाए व मिल्उल अर्ज़े व मिल्ओ शेअ्ता मिन शैइन बअ्दो। अल्लाहुम्मा तह्हिर्नी बिस्सल्जि वल-बरदि वल-माइल बारिद, अल्लाहुम्मा तह्हिर्नी मिनज़्ज़ुनूबि वल ख़ताया कमा युनक़्क़स्सौबुल अब्यज़ो मिनल वसख)

इसे मुस्लिम (हदीस संख्याः 476) ने रिवायत किया है।

चौथा स्थान :

दोनों सज्दों के बीच, क्योंकि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ”दोनों सज्दों के बीच यह दुआ पढ़ा करते थे :

اللَّهُمَّ اغْفِرْ لِي ، وَارْحَمْنِي ، وَاجْبُرْنِي ، وَاهْدِنِي ، وَارْزُقْنِي

अल्लाहुम्मग़-फिर्ली, वर्हमनी, वज्बुर्नी, वह्दिनी, वर्ज़ुक़्नी।

ऐ मेरे रब! मुझे क्षमा कर दे, मुझ पर दया कर, मेरे नुक़्सान पूरे कर दे, मुझे हिदायत दे और मुझे रोज़ी दे।

इसे तिर्मिज़ी (हदीस संख्याः 284) ने रिवायत किया है और अल्बानी ने ”सहीह तिरमिज़ी” में इसे सही कहा है।

इमाम अन-नववी रहिमहुल्लाह कहते हैं :

”अत्-ततिम्मा के लेखक का कहना हैः यही दुआ निर्धारित नहीं है, बल्कि जो भी दुआ कर ली जाए, सुन्नत प्राप्त हो जाएगी। लेकिन यह जो हदीस में है सर्वश्रेष्ठ है।” “अल-मजमूअ” (3/437)  से समाप्त हुआ।

क़ियाम की हालत में क़िराअत के दौरान (भी) दुआ वर्णित है, या तो केवल नफ्ल नमाज़ों में, जैसाकि इसके बारे में नस (स्पष्ट प्रमाण) आया है, या फ़र्ज़ नमाज़ में भी, नफ़्ल के बारे में वर्णति प्रमाण पर क़यास करते हुए, कुछ विद्वानों के निकट।

इसका प्रमाण हुज़ैफ़ा रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस है कि उन्हों ने अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ नमाज़ पढ़ी। उनका कहना है किः “आप किसी दया वाली आयत से गुज़रते तो उसके पास ठहर कर प्रश्न करते, और किसी यातना वाली आयत से गुज़रते तो उसके पास ठहरकर अल्लाह से शरण मांगते।” इस हदीस को अबू दाऊद (संख्या/871) ने रिवायत किया है और अल्बानी ने ”सहीह अबू दाऊद” में इसे सहीह कहा है।

क़ुनूते-नवाज़िल (अर्थात आपदा के समय पढ़ी जाने वाली क़ुनूत) में भी दुआ का वर्णन हुआ है, लेकिन उससे अभिप्राय मूलतः ऐसी दुआ करना है जो उस आपदा के अनुरूप हो, और यदि उसके अधीन होकर दूसरी दुआ भी आ गई, तो हमें आशा है कि इसमें कोई आपत्ति की बात नहीं है।

हाफिज़ इब्ने हजर रहिमहुल्लाह ने फरमायाः

“नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से नमाज़ के अंदर जिन स्थानों पर दुआ करना प्रमाणित है उसका सार यह है कि वे छह स्थान हैं – और उन्हों ने उसके अंत में दो स्थानों की वृद्धि की है – :

पहला : तक्बीर तह्रीमा के बाद, इसके बारे में सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम में अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस है : (اللهم باعد بيني وبين خطاياي … الحديث) “अल्लाहुम्मा बाइद बैनी व बैना खतायाया” (ऐ अल्लाह ! तू मेरे बीच और मेरे गुनाहों के बीच ऐसी दूरी कर दे… अंत तक)

दूसरा : (रुकूअ से सिर उठाने के बाद) सीधे खड़े होने की हालत में, इसके बारे में मुस्लिम में इब्ने अबी औफ़ा रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम (من شيء بعد) के बाद (اللهم طهرني بالثلج والبرد والماء البارد) कहा करते थे।

तीसरा : रुकूअ में, इसके बारे में आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा की हदीस है : “आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपने रुकूअ और सज्दे में سبحانك اللهم ربنا وبحمدك اللهم اغفر لي   कहा करते थे।” इसे बुखारी व मुस्लिम ने उल्लेख किया है।

चौथा : सज्दे में, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इसमें सबसे अधिक दुआ किया करते थे, और आप ने इसमें ज़्यादा से ज़्यादा दुआ करने का आदेश दिया है।

पांचवाँ : दोनों सज्दों के बीच : “اللهم اغفر لي”  (अल्लाहुम्मग़ फ़िर्ली) अर्थात ऐ अल्लाह, मुझे क्षमा कर दे।

छठा : तशह्हुद में।

तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम क़ुनूत में भी दुआ करते थे, और क़िराअत की हालत में : जब आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम किसी दया की आयत से गुज़रते तो प्रश्न करते, और जब किसी यातना की आयत से गुज़रते तो शरण मांगते।” ”फत्हुल-बारी” (11/132) से अंत हुआ।

नमाज़ में वर्णित उक्त स्थानों में सामान्य रूप से सबसे निश्चित दो स्थान हैं : वे दोनों हैं सज्दे और अंतिम तशह्हुद के बाद।

हाफिज़ इब्ने हजर रहिमहुल्लाह ने फरमायाः

”नमाज़ में दुआ का स्थान सज्दा या तशह्हुद है।”

”फत्हुल-बारी” (11/186) से अंत हुआ। तथा उसी पुस्तक में (2/318) भी देखा जा सकता है।

शैख़ इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह ने फरमाया :

”नमाज़ में दुआ करने की जगह : सज्दे, और तहिय्यात के अंत में सलाम फेरने से पहले है।”

“मजमूओ फतावा इब्ने बाज़” (8/310) से समाप्त हुआ।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

at email

डाक सेवा की सदस्यता लें

साइट की नवीन समाचार और आवधिक अपडेट प्राप्त करने के लिए मेलिंग सूची में शामिल हों

phone

इस्लाम प्रश्न और उत्तर एप्लिकेशन

सामग्री का तेज एवं इंटरनेट के बिना ब्राउज़ करने की क्षमता

download iosdownload android