मेरे ऊपर क़सम का कफ़्फ़ारा अनिवार्य था, इसलिए मैंने दस ग़रीबों को खाना खिलाने में सक्षम होने के बावजूद, तीन दिनों के रोज़े रखे। क्या मैंने जो किया, वह सही हैॽ
क़सम के कफ़्फ़ारा में खाना खिलाने की क्षमता के बावजूद रोज़ा रखना पर्याप्त नहीं है
प्रश्न: 42804
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
ग़रीबों को खाना खिलाने या कपड़े पहनाने या गुलाम को मुक्त करने में सक्षम होने के बावजूद, रोज़ा रखना पर्याप्त नहीं है। क्योंकि अल्लाह तआला ने रोज़े के पर्याप्त होने की व्यवस्था केवल उस समय रखी है, जब कोई व्यक्ति ग़रीब को खाना खिलाने या कपड़ा पहनाने, या गुलाम को मुक्त करने में असमर्थ हो। अल्लाह तआला ने फरमाया :
لَا يُؤَاخِذُكُمُ ٱللَّهُ بِٱللَّغۡوِ فِيٓ أَيۡمَٰنِكُمۡ وَلَٰكِن يُؤَاخِذُكُم بِمَا عَقَّدتُّمُ ٱلۡأَيۡمَٰنَۖ فَكَفَّٰرَتُهُۥٓ إِطۡعَامُ عَشَرَةِ مَسَٰكِينَ مِنۡ أَوۡسَطِ مَا تُطۡعِمُونَ أَهۡلِيكُمۡ أَوۡ كِسۡوَتُهُمۡ أَوۡ تَحۡرِيرُ رَقَبَةٖۖ فَمَن لَّمۡ يَجِدۡ فَصِيَامُ ثَلَٰثَةِ أَيَّامٖۚ ذَٰلِكَ كَفَّٰرَةُ أَيۡمَٰنِكُمۡ إِذَا حَلَفۡتُمۡۚ وَٱحۡفَظُوٓاْ أَيۡمَٰنَكُمۡۚ كَذَٰلِكَ يُبَيِّنُ ٱللَّهُ لَكُمۡ ءَايَٰتِهِۦ لَعَلَّكُمۡ تَشۡكُرُونَ
سورة المائدة : 89
“अल्लाह तुम्हें तुम्हारी व्यर्थ क़समों पर नहीं पकड़ता, परंतु तुम्हें उसपर पकड़ता है जो तुमने पक्के इरादे से क़समें खाई हैं। तो उसका प्रायश्चित दस निर्धनों को भोजन कराना है, औसत दर्जे का, जो तुम अपने घर वालों को खिलाते हो, अथवा उन्हें कपड़े पहनाना, अथवा एक दास मुक्त करना। फिर जो न पाए, तो तीन दिन के रोज़े रखना है। यह तुम्हारी क़समों का प्रायश्चित है, जब तुम क़सम खा लो। तथा अपनी क़समों की रक्षा करो। इसी प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतें (आदेश) खोलकर बयान करता है, ताकि तुम आभार व्यक्त करो।” (सूरतुल मायदा : 89).
स्रोत:
“फ़तावा अल-लजनह अद-दाईमह लिल-इफ़्ता” (23/13)