अल्लाह सुब्हानहु व तआला ने वुज़ू के दौरान आयते करीमा में पैरों के लिए मसह करने का उल्लेख क्यों किया है : "अपने सिर का मसह करो और पैरों को दोनों टखनों तक।" जबकि हमने जो शिक्षा पाई है वह यह है कि वुज़ू के दौरान हम अपने पैरों को धोयेंगे, तो फिर "मसह करो" का शब्द क्यों आया है ? क्योंकि मेरी सहेली ने मुझसे यह प्रश्न किया है और उसने मुझसे कहा है कि : मैं वुज़ू के दौरान अपने पैरों पर मसह करती हूँ उन्हें धोती नहीं हूँ, तो मैं जान नहीं सकी कि उसे क्या उत्तर दूँ, क्या इसमें किसी प्रकार का कोई चमत्कार है ? और धोने के स्थान पर मसह करने का उल्लेख करने की क्या हिमकत (तत्वदर्शिता) है ?
क्या वुज़ू के दौरान दोनों पैरों को धोना फर्ज़ है या उन पर मसह करना ?
प्रश्न: 69761
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
वुज़ू के अंदर वाजिब पैरों का धोना ही है, और उन पर मसह करना काफी नहीं है,और आपकी सहेली का आयत से यह समझना कि वह पैरों के धोने पर दलालत करती है सही नहीं है।
इस बात का प्रमाण कि पैरों को धोना ही वाजिब है, वह हदीसे है जिसे बुखारी (हदीस संख्या : 163)और मुस्लिम (हदीस संख्या : 241)ने अब्दुल्लाह बिन अम्र रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : हमने एक यात्रा की थी जिसमें नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हमसे पीछे होगये,फिर हमें इस हालत में पाया कि हमने अस्र की नमाज़ को विलंब कर दिया था,तो हम वुज़ू करने लगे और अपने पैरों पर मसह करने लगे,तो आपने अपनी अधिकतम ऊँची आवाज़ से पुकार कर कहा : ("ऐड़ियों के लिए तबाही है आग से"दो या तीन बार)।
तथा मुस्लिम ने (हदीस संख्या : 242)ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णन किया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक आदमी को देखा जिसने अपने दोनों ऐड़ियों को नहीं धोया था,तो फरमाया : "ऐड़ियों के लिए तबाही है नरक से।"ऐड़ी पाँव के पिछले भाग को कहते हैं।
इब्ने खुज़ैमा ने कहा : यदि मसह कर लेने से फर्ज़ अदा हो जाता तो आग (नरक) की धमही न दी जाती।
हाफिज़ इब्ने हजर ने कहा : "नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से मुतवातिर तरीक़े से आपके वुज़ू की विधि के बारे में सूचनाये वर्णित हैं कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने पैरों को धोया है,और आप अल्लाह के आदेश को स्पष्ट रूप से बयान करने वाले हैं,और सिवाय अली,इब्ने अब्बास और अनस रज़ियल्लाहु अनहुम के किसी अन्य सहाबी से इसके विपरीत साबित नहीं है,तथा इन (तीनों सहाबा) से इस बात से पलट जाना भी साबित है। अब्दुर्रहमान बिन अबी लैला कहते हैं : अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम का दोनों पैरों के धोने पर इत्तिफाक़ (सर्वसहमति) है। इसे सईद बिन मनसूर ने रिवायत किया है।" (अंत) "फत्हुल बारी" (1 / 320)
जहाँ तक आयत का संबंध है और वह अल्लाह तआला का यह कथन है कि : "ऐ ईमानवालो ! जब तुम नमाज़ के लिए खड़े हो तो धोओ अपने चेहरों को और अपने हाथों को कोहनियों समेत और अपने सिर का मसह करो और अपने पैरों को टखनों समेत धोओ।" (सूरतुल माइदा : 6)
तो यह आयत दोनों पैरों का मसह करने पर तर्क स्थापित नहीं करती है,इसका स्पष्टीकरण यह है कि : इस आयत को पढ़ने की दो विधियाँ हैं :
प्रथम : (व-अर्जु-लकुम) लाम के ज़बर के साथ, इस स्थिति में "अर्जुल" (पैरों) का अत्फ "वज्ह" (चेहरा) पर होगा, और चेहरा को धोया जाता है, अतः पैरों को भी धोया जायेगा। गोया आयत का मूल शब्द इस प्रकार हैन: (धोओ अपने चेहरों को,और अपने हाथों को कोहनियों समेत और अपने पैरों को टखनों समेत,और अपने सिर का मसह करो),किंतु पैर के धोने का उल्लेख सिर पर मसह करने के बाद किया गया है इस बात का तर्क देने के लिए कि वुज़ू के अंदर अंगों की तरतीब (क्रम) इसी ढंग से होगी,यानी चेहरा धोना,फिर हाथों को धोना,फिर सिर का मसह करना,फिर पैरों का धोना।
देखिये : "अल-मजमूअ़" (1 / 471)
दूसरी : (व-अर्जुले-कुम) लाम के ज़ेर के साथ, इस स्थिति में उसका अत्फ “रास” (सिर) पर होगा, और सिर का मसह किया जाता है,अतः पैरों का भी मसह किया जायेगा।
परंतु सुन्नत (हदीस) ने यह स्पष्ट कर दिया है कि केवल मोज़ों या जुर्राबों पर मसह किया जायेगा, जिसकी हदीस में वर्णित कुछ परिचित शर्तें भी हैं।
देखिये : "अल-मजमूअ़" (1 / 450) "अल-इख्तियारात" (पृष्ठः 13)
तथा मोज़ों पर मसह करने की शर्तों के बारे में जानकारी के लिए प्रश्न संख्या (9640) देखिये।
इस से स्पष्ट हो जाता है कि आयत दोनों क़िराअतों (पढ़ने की विधियों) के आधार पर पैरों का मसह करने पर तर्क है, बल्कि वह पैरों के धोने की अनिवार्यता, या मोज़े पहनने वाले के लिए मोज़ों पर मसह करने पर तर्क है।
कुछ उलमा -ज़ेर की क़िराअत के आधार पर- इस बात की ओर गये हैं कि पैर के बारे में मसह का उल्लेख करने की हिकमत (तत्वदर्शिता) जबकि उसे धोया जाता है,यह है कि इस से इस बात का संकेत देना है कि पैरों को धोते समय पानी का प्रयोग कम करना चाहिए, क्योंकि आम तौर पर उनके धोते समय अधिक पानी खर्च किया जाता है, इसलिए आयत ने मसह करने का आदेश दिया है अर्थात् पानी में फुज़ूल खर्ची से काम लिए बिना धोया जाये।
इब्ने क़ुदामा ने "अल-मुग़नी" (1 / 186) में फरमाया :
"इस बात की संभावना है कि मसह से अभिप्राय हल्का धोना है। अबू अली फारसी का कहना है : अरब हल्का धोने को मसह कहते हैं। चुनांचे वे कहते हैं : तमस्सह्तो लिस्सलात (मैं ने नमाज़ के लिए मसह किया)। अर्थात् तवज़्ज़ा'तो। (मैं ने वुज़ू किया)।" (अंत)
तथा शैखुल इस्लाम रहिमहुल्लाह ने फरमाया :
"पैरों पर मसह का उल्लेख करने में पैर पर कम पानी उंडेलने पर चोतावनी है क्योंकि उनमें आम तौर पर फुज़ूल खर्ची से काम लिया जाता है।" (अंत)
"मिनहाजुस्सुन्नह" (4 / 174)
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर
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