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क्या वह अपनी बच्ची के रोने के कारण जमाअत की नमाज़ तोड़ सकती है?

प्रश्न: 75005

मैं मस्जिद में जमाअत के साथ नमाज़ अदा कर रही थी कि मेरी बेटी रोने लगी। वह मस्जिद के बाहर थी और लोग उस को मेरे पास लेकर आाए। वह तेज़ आवाज़ से रो रही थी, इसलिए मैं अपनी नमाज़ तोड़ने पर मजबूर हो गई। मेरे इस कार्य का क्या हुक्म है? क्या मैं इस पर गुनाहगार हो गई? यह बात ज्ञात रहे कि महिलाओं के नमाज़ पढ़ने का स्थान पुरूषों के तुरन्त पीछे है। और हमारे और उन के बीच मात्र एक आड़ का अंतर है। यदि मैं नमाज़ को जारी रखती तो उसके रोने से नमाज़ियों को परेशानी (अशांति) हो सकती थी।

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

सर्व
प्रथम :

विद्वानों
का की सर्व सहमति
है कि बिना किसी
शरई कारण के जान-बूझ़कर
फ़र्ज़ नमाज़ को उसे
शुरू करने के बाद
तोड़ देना वर्जित
है।

जिन
शरई कारणों की
बिना पर फ़र्ज़ नमाज़
को तोड़ना जायज़
है,
उन में
से कुछ सुन्नते
नबविय्या में वर्णित
हुए हैं। और उन्हीं
पर उस कारण को भी
क़ियास किया जाएगा
जो उनके समान है
या उनसे सर्वोचित
है।

नमाज़
को – चाहे फर्ज़ हो
या नफ़्ल – तोड़ने
को जायज़ ठहराने
वाले उन कारणों
में से: साँप को
मारना,
अपने धन के नष्ट
होने का भय,
या किसी परेशानहाल
(संकट ग्रस्त) की
मदद करना,
या किसी ड़ूबने
वाले को बचाना,
या आग बुझ़ाने
के लिए,
या किसी असावधान
व्यक्ति को किसी
हानिकारक चीज़ से
सचेत करना।

इन कारणों
का प्रश्न संख्या
(65682) और (3878) के उत्तर
में उल्लेख किया
जा चुका है।

दूसरा:

यदि
बच्चा रोने लगे
और उसके माता या
पिता के लिए जमाअत
की नमाज़ में उसे
खा़मोश कराना दुर्लभ
हो जाए : तो उन दोनों
के लिए उसे चुप
कराने के लिए नमाज़
को तोड़ना जायज़
है। क्योंकि इस
बात की आशंका है
कि उसका रोना उसे
पहुँचने वाली किसी
हानि के कारण हो
; तथा इस बात का भी
डर है कि दूसरे
नमाज़ियों की नमाज़,
उसके उनके लिए
अशांति पैदा करने
की वजह से, नष्ट
हो सकती है।

यदि
मामूली कर्म के
द्वारा क़िबला की
दिशा से विमुख
हुए बिना उसे चुप
कराना संभव है,
तो औरत ऐसा
कर सकती है और फिर
वह अपनी नमाज़ में
लौट आएगी,
चुनाँचे –
उदाहरण के
तौर पर – वह अपनी
नमाज़ को तोड़े बिना
उसे उठाने के लिए
पीछे लौट सकती
है। लेकिन अगर
वह संपूर्ण रूप
से नमाज़ तोड़े बिना
उसे खामोश कराने
में सक्षम न हो
सके तो वह ऐसा कर
सकती है (अर्थात
नमाज़ तोड़ सकती
है) और इन शा अल्लाह
ऐसा करने में उसके
ऊपर कोई हानि (पाप)
नहीं है।

‘‘मतालिब
ऊलिन्नुहा’’ (1/641) में आया है
कि
:

“यदि कुछ
मुक़्तदियों को
नमाज़ के दौरान
कोई ऐसी चीज़ पेश
आ जाए जो उसके लिए
नमाज़ से बाहर निकलने
की अपेक्षा करती
हो जैसेकि किसी
बच्चे के रोने
की आवाज़ सुनना,
तो इमाम के
लिए नमाज़ को हल्की
करना सुन्नत का
तरीक़ा है,
क्योंकि अल्लाह
के नबी सल्लल्लाहु
अलैहि व सल्लम
का फ़रमान है
किः ”मैं नमाज़ में
खड़ा होता हूँ,
और मैं नमाज़ लम्बी
करना चाहता हूँ,
तो बच्चे के रोने
की आवाज़ सुनता
हूँ, तो इस डर से
नमाज़ को हल्की
कर देता हूँ
कि कहीं बच्चे
की माँ को कष्ट
और कठिनाई में
न डाल दूँ।”
इसे अबू दाऊद ने
रिवायत किया है।”
अन्त हुआ।

फतावा
स्थायी समिति के
विद्वानों से प्रश्न
किया गया कि
:

जब नमाजी़
अपनी ओर किसी जानवर
जैसे : बिच्छू और
उसके अलावा अन्य
ज़हरीले जानवर को
आता देखे, तो क्या
वह अपनी नमाज़ तोड़
सकता है? इसी प्रकार
क्या हरम में नमाज़
अदा करते समय नमाज़
तोड़ना जायज़ है
ताकि वह अपने उस
बच्चे या बच्ची
को पकड़ सके जो उससे
गुम हो जाने के
क़रीब हो?

तो समिति
के विद्वानों ने
उत्तर दिया
:

”यदि
उसके लिए नमाज़
तोड़े बिना बिच्छू
आदि से छुटकारा
पाना आसान है,
तो वह नमाज़
नहीं तोड़ेगा,
अन्यथा वह
उसे समाप्त कर
सकता है। और यही
परिस्थिति उसके
बच्चे के बारे
में भी है यदि उसके
लिए नमाज़ तोड़े
बिना अपने बच्चे
की देखभाल करना
आसान है तो वह ऐसा
ही करेगा,
अन्यथा वह
नमाज़ तोड़ देगा।’’
अन्त हुआ।

इफ्ता
और वैज्ञानिक अनुसंधान
की स्थायी समिति
का फतावा (8/36-37)

तथा
प्रश्न संख्या
(26230) का भी उत्तर देखें।

और अल्लाह
तआला ही सबसे अधिक
ज्ञान रखता है।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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