उसे संदेह है कि उसने यौवन तक पहुँचने के बाद रमज़ान का रोज़ा रखा या नहीं, तो उसे क्या करना चाहिएॽ
वह रात ही से रोज़े की नीयत किए बिना रमज़ान की क़ज़ा के रोज़े रखती थी, वह सुबह के समय रोज़े की नीयत करती थी, तो अब उसे क्या करना चाहिएॽ
जो व्यक्ति बिना किसी उज़्र के रमज़ान का रोज़ा न रखे अथवा बीच रमज़ान में जानबूझ कर रोज़ा तोड़ दे तो क्या उस पर क़ज़ा करना अनिवार्य है?
25 वर्ष हुए उसने बीमारी के कारण रमज़ान का रोज़ा तोड़ दिया और अभी तक उसकी कज़ा नहीं किया
क्या वह शव्वाल के छः रोज़े रखना शुरू कर सकता है जबकि उसके ऊपर रमज़ान की क़ज़ा बाक़ी है
शव्वाल के छ: रोज़ों के साथ रमज़ान की क़ज़ा को एक ही नीयत में एकत्रित करना शुद्ध नहीं है
रोज़े की क़ज़ा करने से पहले क़ज़ा को विलंबित करने का फिद्या देने का हुक्म
यदि शेष दिन पर्याप्त नहीं हैं तो क्या वह क़ज़ा करने से पहले शव्वाल के छ: रोज़े से शुरूआत करेगा ?
क्या महिला को रमज़ान की क़ज़ा से शुरूआत करनी चाहिए या शव्वाल के छ: रोज़े से ?
रमज़ान के रोज़ों की अलग-अलग दिनों में क़ज़ा करने वाले पर कोई आपत्ति नहीं है
रमज़ान के छूटे हुए रोज़ों की क़ज़ा करने की नीयत से शक के दिन रोज़ा रखना
जो व्यक्ति क़ज़ा के दिन रोज़ा तोड़ दे, तो क्या उसे तीन दिन रोज़ा रखना चाहिएॽ!!
रमज़ान के रोज़ों की क़ज़ा में निरंतरता अनिवार्य नहीं है
वह रोज़े की क़ज़ा शुरू करने से पहले गर्भवती होगई और वह रोज़ा रखने में सक्षम नहीं है
रोज़े की क़ज़ा में विलंब करना
शाबान के दूसरे अर्ध भाग में रमज़ान के छूटे हुए रोज़ों की क़ज़ा करने में कोई आपत्ति की बात नहीं है
जिस व्यक्ति पर रमज़ान के रोज़े हों, जिनकी संख्या उसे याद न हो
वे लोग कम्युनिस्ट शासन के अधीन थे और उन्हें नमाज़ और रोज़े का कुछ भी ज्ञान नहीं था तो क्या उन पर क़ज़ा अनिवार्य है ॽ
तश्रीक़ के दिनों में अनिवार्य रोज़े की क़ज़ा करना सही नहीं है
रोज़े के फ़िद्या में खाना खिलाने के बदले पैसा निकालना जायज़ नहीं है
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