उसने रोज़ा रखने का इरादा किया और कहा : अगर मासिक धर्म आ गया, तो मैं रोज़ा तोड़ दूँगी। तो क्या यह नीयत को लंबित करने के अंतर्गत आता है और क्या उसका रोज़ा सही हैॽ
उसने मासिक धर्म से स्नान किया जबकि वह अपनी पलित्रता के प्रति सुनिश्चित नहीं थी, फिर वह फज्र से पहले सुनिश्चित हो गई और उसने स्नान को दोहराए बिना रोज़ा रखा और नमाज़ पढ़ी। तो क्या उसका रोज़ा और नमाज़ सही हैंॽ
वह रमज़ान की क़ज़ा का रोज़ा रखे हुए थी और उसकी बहन ने उसे खाने के लिए बुलाया तो उसने रोज़ा तोड़ दिया
यदि मुसाफ़िर असमंजस में था कि वह रोज़ा रखे या न रखे, फिर उसने फ़ज्र उदय होने के बाद रोज़ा रखने का संकल्प कर लिया।
उसने रमज़ान में रोज़ा तोड़ दिया और अब वह न क़ज़ा करने में और न खाना खिलाने में सक्षम है
रोज़ा सूरज के डूबने तक है, न कि जैसा कि कुछ शीया का कहना है
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